Monday 27 July 2015

जिक्र जब भी...

जिक्र जब भी... 
(गजल)

जिक्र जब भी, कहीं हुआ तेरा,
नाम अक्सर ही, आ गया मेरा। 

तुम तो शामिल रहे, फ़ेहरिश्ते-शहर-हूरों*१ में,
नाम शोहदों*२ में, आ गया मेरा। जिक्र जब भी कहीं...

हर एक शख़्स यहाँ, हाकिम-ए-इजलास*३ हुआ,
किसको फ़ुरसत, जो ले बयां मेरा। जिक्र जब भी कहीं...

खुश रहो तुम, जहां रहो, सदा शादाब*४ रहो,
दे रहा दिल, यही दुआ मेरा। जिक्र जब भी कहीं...

चल पड़ा कारवाँ, मेरा ख़ुदाई-मंज़िल*५ को,
खत्म बस आज से, वाक़िया*६ मेरा। जिक्र जब भी कहीं... 

जिक्र जब भी, कहीं हुआ तेरा,
नाम अक्सर ही, आ गया मेरा। 

27 जुलाई 2015             ~~~अजय।
* १ शहर की खूबसूरत पारियों की सूची।
   २ बदमाश, लोफ़र।
   ३ अदालत के जज साहब।
   ४ हरा-भरा, प्रफुल्लित।
   ५ ईश्वरीय गंतव्य, स्वर्ग।
   ६ किस्सा। 

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