Sunday 31 May 2015

खरीददार...खबरदार !

खरीददार...खबरदार !... 

सुन ऐ खरीददार ... खबरदार !
मैं बिकता नहीं हूँ ,
टूट जाऊँ भले एक दिन पर ... 
मैं झुकता नहीं हूँ । 

चलते होंगे करोड़ों के, सिक्के तेरे ... 
फिरते होंगे हज़ार, आगे पीछे तेरे ... 
मैं न चल पाऊँगा तेरी राहें,
तेरा सिक्का नहीं हूँ । 
सुन ऐ खरीददार ... खबरदार ! मैं बिकता नहीं हूँ ।

गा सको मेरे सुर में, तो गाओ ... 
चल सको मेरे संग, तो आ जाओ ... 
कारवाँ हूँ वो, जो चल पड़ा हूँ, 
मैं रुकता नहीं हूँ । 
सुन ऐ खरीददार ... खबरदार ! मैं बिकता नहीं हूँ । 

खोल आँखों को, आर-पार देखो... 
हो रहे हैं वो तार-तार, देखो... 
खुली पुस्तक मेरी जिंदगानी, 
कोई परदा नहीं हूँ। 
सुन ऐ खरीददार ... खबरदार ! मैं बिकता नहीं हूँ । 

31 मई 2015                               ...अजय।

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