Thursday 7 August 2014

बरबादियों के जश्न का...

बरबादियों के जश्न का...


बरबादियों के जश्न का, ले, ... कारवाँ चले,

मेरे दर से आज मेरे, ...मेहरबाँ चले॥


इस बाग के गुलों में..., खुशबू...जो थी उनकी,

सबको समेट कर के मेरे, ...बागबाँ चले॥


माटी कुरेद कर के बनाई थीं क्यारियाँ,

फूलों को रौंदते हुए, ...जाने कहाँ चले॥


हमको यकीन था कि सर पे, ...एक फ़लक है,

पल में हटा के सर से मेरे, ...आसमाँ चले॥


हमने लिखा था 'घर' जिसे, अपनी किताब में,

किस बेरुखी से कह के उसे, ...वे मकाँ चले॥ 

06 अगस्त 14                         ...अजय।