Wednesday 21 May 2014

पत्ता-पत्ता रस से भींजे...

पत्ता-पत्ता रस से भींजे...


पत्ता-पत्ता रस से भींजे, जब अमियाँ  बौराती हैं, 
दिल के तार खनकते हैं जब, वो बगिया में आती हैं। 

सबा नशीली होती है और, शब की नींदें जाती हैं,
तिनका-तिनका गज़ल पढे जब, वो मौसम बन आती हैं,
पत्ता पत्ता रस से भींजे...... 

महुए सी रस से बोझिल जब, वो आगोश मे आती हैं,
धक-धक करती दिल की धड़कन, भी संगीत सुनाती हैं,
पत्ता पत्ता रस से भींजे...... 

20 मई 2014                                          ...अजय। 

No comments:

Post a Comment