Wednesday 5 March 2014

सम्हल के रहना ऐ चाँद

सम्हल के रहना ऐ चाँद ज़रा 

चटोरियों कि नज़र, चटक स्वाद पर है,
बिल्लियों की नज़र, चूहों की माँद पर है,
उन्मादियों की नज़र, बढ़ते उन्माद पर है,
सम्हल के रहना ऐ चाँद जरा… 
चकोरों की नज़र तो…  बस चाँद पर है।  

खबरनवीसों की नज़र, चटखारे विवाद पर है,
किसानों की नज़र, कृत्रिम खाद पर है,
पुजारी की नज़र, चढ़ रहे प्रसाद पर है,
सम्हल के रहना ऐ चाँद जरा…
चकोरों कि नज़र तो…  बस चाँद पर है।

आरक्षण की नज़र, जातिवाद पर है,
असमाजियों की नज़र, समाजवाद पर है,
आतंकियों की नज़र आतंकवाद पर है,
सम्हल के रहना ऐ चाँद जरा…
चकोरों कि नज़र तो…  बस चाँद पर है।

 04 मार्च 2014                                         ...अजय 

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