Monday 8 September 2014

खतरे में......???

खतरे में...

न राम खतरे में, ... न इस्लाम खतरे में,
कोई है जो खतरे में तो है ईमान खतरे में,
न बोधि खतरे में, न गुरु-ज्ञान खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।

है प्रेम का संदेश, सभी पोथी-पतरे में,
है रंग एक सा, लहू के कतरे कतरे में,
नहीं आंच है गीता पे, न कुर-आन खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।

भड़का रहे हमें-तुम्हें, बेईमान खतरे में,
लगती है जिन्हें अपनी अब दुकान खतरे में,
न हिन्द खतरे में, न मुसलमान खतरे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।

करो कुछ यों, न रहे देश किसी खौफ़-खतरे में,
बेटियाँ पलें अपने नूरानी नाजो-नखरे में,
रख के दिल पे हाथ बोले, यह ज़ुबान जिक्रे में,
खतरे में अगर है तो है इंसान खतरे में।

05 सितंबर 2014                         ...अजय 

Thursday 7 August 2014

बरबादियों के जश्न का...

बरबादियों के जश्न का...


बरबादियों के जश्न का, ले, ... कारवाँ चले,

मेरे दर से आज मेरे, ...मेहरबाँ चले॥


इस बाग के गुलों में..., खुशबू...जो थी उनकी,

सबको समेट कर के मेरे, ...बागबाँ चले॥


माटी कुरेद कर के बनाई थीं क्यारियाँ,

फूलों को रौंदते हुए, ...जाने कहाँ चले॥


हमको यकीन था कि सर पे, ...एक फ़लक है,

पल में हटा के सर से मेरे, ...आसमाँ चले॥


हमने लिखा था 'घर' जिसे, अपनी किताब में,

किस बेरुखी से कह के उसे, ...वे मकाँ चले॥ 

06 अगस्त 14                         ...अजय। 

Friday 25 July 2014

वो आ रहे हैं मिलने...

वो आ रहे हैं मिलने...

कोई कर दे ख़बर जाकर, ख़बर-नवीस को,
वो आ रहे हैं मिलने, मुझसे पचीस को।

जब से मिली खबर ये, दिल बाग-बाग है,
मैं जानूँ कि, शायद ये खबर है अनीस को। 

हम देखते हैं रहे जो, आँखों मे भर के ख़्वाब,
सच कर के दिखाएंगे, वे खुद से पचीस को।

हमने बसर किए हैं, तन्हाइयों के दिन,
आसान वो कर देंगे, आकर अवीस को।

ईमान कि कसम, बस हमको उनसे प्यार है,
कर लो यकीनाज ऐलान-ए-अफीफ़ को। 

24 जुलाई 14                            ...अजय।
(खबर नवीस=संवाददाता,अनीस=दोस्त,  
अवीस=मुश्किल, अफीफ़=पत्नीव्रत) 

Monday 21 July 2014

बरसेला बदरा बेजार...

बरसेला बदरा बेजार...
(भोजपूरी रचना )

चुए लागल, छन्हीया से पानी .....सइयाँ कहाँ बानी,
बरसेला....... बदरा बेजार .........रऊआं कहाँ बानी।

जेठ भरि हमरा के,... घामवाँ तपवलीं,सइयाँ कहाँ बानी,
आसढ़ा में ...दिहलीं बिसार,......रऊआं कहाँ बानी। 

केतने महीनवाँ से,.... आसरा सजवलीं,सइयाँ कहाँ बानी,
परे लागल,...सावन के फुहार,......रऊआं कहाँ बानी।


देखा-देखी भूखे लगलीं,....करवा-चऊथिया, सइयाँ कहाँ बानी,
कब होई पारन हमार, रऊआं कहाँ बानी।

साथे के सहेलिया हमरी भईलीं लरिकोरिया, सइयाँ कहाँ बानी,
कब सजी,... गोदिया हमार,......रऊआं कहाँ बानी। 

चुए लागल, छन्हीया से पानी .....सइयाँ कहाँ बानी,
बरसेला....... बदरा बेजार .........रऊआं कहाँ बानी।


20 जुलाई 14                                        ...अजय। 

Saturday 5 July 2014

हमके भावे भोजपूरी लहरदार ...

हमके भावे भोजपूरी लहरदार बोलिया ...

लहरदार बोलिया,लहरदार बोलिया, लहरदार बोलिया,
हमके भावे भोजपूरी, लहरदार बोलिया,
हमके भावे भोजपूरी, लहरदार बोलिया।

बगिया की गंछिया पे कुहुकत कोइलिया,
खेतवा की मेढ़वा पे, बलखत गुजरिया,
गाँव के सिवाने से, उठत डोलिया,
हमके भावे भोजपूरी, लहरदार बोलिया।

मथवा पे पल्लू असिरबाद जस सोहे,
सीने पर दुपट्टा हमरी बिटियन  के मोहे,
सजे बहुअन की देहीं, रंगदार चोलिया,
हमके भावे भोजपूरी, लहरदार बोलिया।

बिरहा के धुन भावे, भावेला सोहरिया,
फगुआ चुहुलदार, और चइता कजरिया,
गांवे - गांवे बिचरत, भजन टोलिया,
हमके भावे भोजपूरी, लहरदार बोलिया।

खिंचड़ी नहान, सतुआनि मन भावे,
छट्ठ के अरघ, सूर्यदेव के मनावे,
तन-मन रंग दे, रंगदार होलिया,
हमके भावे भोजपूरी, लहरदार बोलिया।

05जुलाई14                                 ...अजय। 

Thursday 26 June 2014

दिन बीता तो आई रैना ...

दिन बीता तो आई रैना ...

दिन बीता तो आयी रैना, मेरी नींद उड़ाने को,
उनकी यादों मे भर आयीं, अँखियाँ नीर बहाने को।

पीपर पात सरिस मन डोले, बे-मौसम बरसातों मे,
दीपक बन कर तरसाये है, वो प्रिय हिय-परवाने को।

जेठ की तपी दुपहरी में भी, हमने जिसकी राह तकी,
सूखे होंठों को न मिला वो, जल दो घूँट पिलाने को।

बरखा की बूँदों की टिप-टिप, प्यासी धरती छेड़ गयी,
फिर आयीं मदमस्त फुहारें, बिरहन को तड़पाने को।

आकुल मन करता मनुहारें, साजन अब तो आ जाओ,
जी न सकेंगे अब हम तुम बिन, जीवन के वीराने को। 

दिन बीता तो आयी रैना, मेरी नींद उड़ाने को,
उनकी यादों मे भर आयीं, अँखियाँ नीर बहाने को।

25 जून 2014                                                            ...अजय।  

Wednesday 25 June 2014

आँख का नूर...

आँख का नूर ....

कोई शख्स सब की आँखों का नूर नहीं है;
इसमे तेरा या मेरा कुसूर नहीं है;
नज़रें अपनी हैं नज़ारे भी हैं अपने अपने;
मगर खुदा से हटकर कोई मशहूर नहीं है।

23 जून 14                            ...अजय।


शांति-दूत...

शांतिदूत
लेकर आया पुष्प रंगीला,
पंछी प्रेम सनेसे वाला;
शांति,शुद्ध,निर्मल काया में, 
सजा धवल यह दूत सजीला॥
२४/०६/१४ ...अजय।

Tuesday 24 June 2014

आदाब अर्ज़ है...

आदाब अर्ज़ है...

भाई साहब, आदाब अर्ज है ...
बहन जी, आदाब अर्ज़ है...

अरे! ये क्या? सारा का सारा ठीकरा,
औरों के सर ही फोड़ आओगे क्या ?
या फिर, थोड़ी बहुत जिम्मेवारियाँ,
आप अपने सर भी उठाओगे क्या ?
आपका भी अपना, कुछ  तो फ़र्ज़ है.....
...भाई साहब, बहन जी..........आदाब अर्ज़ है।

भाई साहब, आदाब अर्ज है ...
बहन जी, आदाब अर्ज़ है...
अरे रे रे रे रे! ...जरा सम्हल कर बेटे,
बाइक पर निकले, तो हेलमेट ले लेते,
खैर, इसे आराम से चलाओ तो भी चलेगी,
अपनी कमर न डुलाओ, तो भी ये हिलेगी,
सेफ़्टी से  चलने मे क्या हर्ज है ?
 ...भाई साहब, बहन जी..........आदाब अर्ज़ है।

भाई साहब, आदाब अर्ज है ...
बहन जी, आदाब अर्ज़ है...
आज चुनाव का दिन है, आप वोट तो देंगे?
मज़हबी,जातवाले को? या बहते नोट को देंगे?
पड़ोसी गाँव का वो छोकरा, मशहूर नहीं है...
कमजोर है, गुंडा नहीं, मगरूर नहीं है,
नेताजी को ही आप से कल, कौन गर्ज है?
...भाई साहब, बहन जी..........आदाब अर्ज़ है।

भाई साहब, आदाब अर्ज है ...
बहन जी, आदाब अर्ज़ है...
उनके घर मे यदि हुई तो ये महामारी है,
नज़ला भी अगर हो तो अँग्रेजी बीमारी है,
यहाँ वैसी बीमारी का हस्पताल नहीं है...
अगर है तो फिर 'स्विस बैंक' या पाताल में ही है,
जनता को कहाँ जानलेवा कोई मर्ज है ?
...भाई साहब, बहन जी..........आदाब अर्ज़ है।

23 जून 14                                                 ...अजय।   

खार...

खार ...



ये खार नहीं हैं यार हैं जो एहसास दिलाते रहते हैं .....
गद्दों ने तो मदहोश किया, ये प्यार जताते रहते हैं ॥22/06/14

Wednesday 18 June 2014

बेनाम रिश्ते ...

ये  घाव पुराने हैं ...

बेनाम ही सही ये, फिर भी रिश्ते तो हैं।   
हैं घाव पुराने ये मगर, रिसते तो हैं॥

अब आप ही बताइये, घुनों का क्या क़ुसूर ?
गेहूं के साथ हैं, जनाब पिसते तो हैं...
बेनाम ही सही ये, फिर भी रिश्ते तो हैं।   
हैं घाव पुराने ये मगर, रिसते तो हैं॥ 

बिस्तर की चादरों सी, है तमाम जिंदगी...
बेदाग भी रहें तो रोज, घिसते  तो हैं...
बेनाम ही सही ये, फिर भी रिश्ते तो हैं।
हैं घाव पुराने ये मगर, रिसते तो हैं॥

"बादाम" न मिल पाएँ इसका हमको गम नहीं...
बच्चों की मुट्ठियों मे, सूखे पिस्ते तो हैं...
बेनाम ही सही ये, फिर भी रिश्ते तो हैं।   
हैं घाव पुराने ये मगर, रिसते तो हैं॥

फ़लक की सीढ़ियों का हमें, ख्वाब भी न था...
बुनियाद के पत्थर में नाम दिखते तो हैं...
बेनाम ही सही ये, फिर भी रिश्ते तो हैं।   
हैं घाव पुराने ये मगर, रिसते तो हैं॥

18 जून 2014                          ...अजय। 

Wednesday 21 May 2014

पत्ता-पत्ता रस से भींजे...

पत्ता-पत्ता रस से भींजे...


पत्ता-पत्ता रस से भींजे, जब अमियाँ  बौराती हैं, 
दिल के तार खनकते हैं जब, वो बगिया में आती हैं। 

सबा नशीली होती है और, शब की नींदें जाती हैं,
तिनका-तिनका गज़ल पढे जब, वो मौसम बन आती हैं,
पत्ता पत्ता रस से भींजे...... 

महुए सी रस से बोझिल जब, वो आगोश मे आती हैं,
धक-धक करती दिल की धड़कन, भी संगीत सुनाती हैं,
पत्ता पत्ता रस से भींजे...... 

20 मई 2014                                          ...अजय। 

Thursday 15 May 2014

बिहान हो गइल...

बिहान हो गइल...
(...एक भोजपूरी उम्मीद )


सूखल पोखरा में पानी के निदान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

हाथे के लकीर लखत, दिनवाँ बितवल_अ,
केहू सुधि लेई कबो....सपना सजवल_अ,
देख_अ  पोखरा में कमल के उफान हो गइल, 
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

बाबा विस्वनाथ तोहार लालसा पुरवलें,
ख़ाक से उठा के तोहके माथ पर सजवलें,
पूरन कर सब सपनवा, दिल जवान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

खुसुर-पुसुर बंद, अब जलवा देखा द,
हमलावरन के, सही रास्ता चेता द,
देश कर _अ शक्तिशाली, ई ऐलान हो गइल,
चल_अ, उठ_अ, छोड़ चादारा, बिहान हो गइल।

15 मई 2014                                      ...अजय।  

Monday 12 May 2014

अज़ीज़ सी कशिश...

अज़ीज़ सी कशिश...


बसे वो ऐसे, मेरी रूहो-खयालातों में,
कि जिक्र रह-रह के, आ जाये, बातों बातों में।

हज़ार ताने सहे हमने, लाख फ़िकरे सुने,
डोर फिर भी, सौंप आए, उन्हीं हाथों में।

जिधर नज़र गयी, उधर ही वो, नज़र आए,
ऐसा चश्मा है, मुँदी आँखों में।

न जाने कौन सी, खुशबू से, लबरेज हैं वो,
एक अज़ीज़, सी कशिश है , मुलाकातों में। 

टूटे ख़ाबों ने, जग कर, इधर-उधर झाँका,
दिल में सोया था, किसे आता नज़र, वो रातों में। 

11 मई 2014                                                ...अजय। 

Thursday 27 March 2014

मुझे दीदार चाहिए...

मुझे दीदार चाहिए ...

ऐ यार, मुझे यार का दीदार चाहिए,
बहती हवा में, बस जरा सा प्यार चाहिए। 

कहने को दोस्तों की भीड़........चैन नहीं है,
जो दिल को दे सुकून, वो संसार चाहिए।

गुलशन तो है गुलज़ार ये, दुनिया के गुलों से,
वो गुल जो छेड़ जाये, दिल के तार, चाहिए।

सुलगा गयीं अगन, कुछ बरसात की बूंदें,
शीतल करे वो, सावनी बौछार चाहिए।

ऐ यार, मुझे यार का दीदार चाहिए,
बहती हवा में, बस जरा सा प्यार चाहिए।

जगमग तमाम अजनबी चेहरों से ये शहर,
हमको हमारे गाँव का बाज़ार चाहिए।

सप्ताह का हर दिन तो भागम-भाग में काटा,
हम सबको पुरसुकून एक इतवार चाहिए।

18 अगस्त 2013                                        ...अजय 

Wednesday 5 March 2014

दाम्पत्य...

दाम्पत्य......

मैं उनसे लड़ी थी, वो मुझसे लड़े थे,

अपनी मनाने पर दोनों अड़े थे ...

कनखियों से जो देखा छुप छुप कर दोनों ने,

"मैं" लघु हो गया... और हम दोनों बड़े थे।


05 मार्च 2014                              ...अजय 

सम्हल के रहना ऐ चाँद

सम्हल के रहना ऐ चाँद ज़रा 

चटोरियों कि नज़र, चटक स्वाद पर है,
बिल्लियों की नज़र, चूहों की माँद पर है,
उन्मादियों की नज़र, बढ़ते उन्माद पर है,
सम्हल के रहना ऐ चाँद जरा… 
चकोरों की नज़र तो…  बस चाँद पर है।  

खबरनवीसों की नज़र, चटखारे विवाद पर है,
किसानों की नज़र, कृत्रिम खाद पर है,
पुजारी की नज़र, चढ़ रहे प्रसाद पर है,
सम्हल के रहना ऐ चाँद जरा…
चकोरों कि नज़र तो…  बस चाँद पर है।

आरक्षण की नज़र, जातिवाद पर है,
असमाजियों की नज़र, समाजवाद पर है,
आतंकियों की नज़र आतंकवाद पर है,
सम्हल के रहना ऐ चाँद जरा…
चकोरों कि नज़र तो…  बस चाँद पर है।

 04 मार्च 2014                                         ...अजय 

Saturday 8 February 2014

वह चली गयी ...

वह चली गयी … 
(सासू- माता  के देहावसान पर)


कुछ फूल खिलाये थे अनुपम, उसने अपने बागीचे में,

उनमें से एक मिला मुझको, सजता है मेरे दरीचे में.

मालिन थी वह, मलकिन भी थी, माली का बाग़ रखाती थी, 
बगिया के पुष्प सिंचे उससे, माली के ख्वाब सजाती थी.

परवाह न की उस माटी की,जो हाथों में लग जाती थी,
उसको भी वह श्रृंगार मान, अपनों के लिए सजाती थी.

सहती थी नखरे, नाज़ों-गम , सबको सप्रेम खिलाती थी,
खुद रहती थी बीमार मगर,सबके माथे सहलाती थी.

वह जो भी थी, जैसी भी थी,…अंजुमन की शम्मा थी,
जो चाहे उसको तुम कह लो, वह इन पुष्पों की अम्मा थी.

वह चली गयी इस बगिया से, सब पुष्प बुझे मुरझाये हैं,
काले बादल बरसातों के, …कुछ इन आखों में छाये हैं.

२३ जनवरी २०१४                                                                    …अजय. 

Saturday 18 January 2014

का मनाईं खिचड़ी...

 का मनाईं खिचड़ी … ?

दंगा में घर गाँव गंववलीं, राजनीति में पगड़ी
घाव केहु ना देखे मन के, जांचे "अगड़ी" "पिछड़ी"
का मनाईं  खिचड़ी ?… का मनाईं खिचड़ी।

छूए के ना "सीधा"-"पईसा" ,  बाँटे के ना रेवड़ी,
मुँह धोवे के पानी मुश्किल, ओढ़े  खातिर गुदड़ी,
का मनाईं  खिचड़ी ?… का मनाईं खिचड़ी।

हम ना पढीं अ,आ, इ, ई.…मुखिया पढ़ें बिदेसी,
घूमि घूमि कम्प्यूटर बाँटें, जरे ना घर  में ढेबरी,
का मनाईं  खिचड़ी ?… का मनाईं खिचड़ी।

 रहे के ठेकाना नइखे, तम्मू  गयी उखारी,
ना केहू बतिया सुने वाला, काज ना कोई दिहाड़ी,
का मनाईं  खिचड़ी ?… का मनाईं खिचड़ी।

दुःख  से हिया फाटे हमरो, के से रोईं दुखारी,
वोटवा माँगे आवें जवन,  उहो मारे लंगड़ी,
का मनाईं  खिचड़ी ?… का मनाईं खिचड़ी। 

 14 जनवरी 2014                                        …अजय। 

Thursday 9 January 2014

अकेलापन...

अकेलापन... 

मैंने अकेलेपन को जब देखा करीब से,
वह भी लगा हारा हुआ अपने नसीब से।

वे खुश रहें, खिलते रहें,बस चाहता है वो,
अपनों के वास्ते, स्वयं को पालता है वो।

दो शब्द अपनेपन के पड़े, उसके कान में,
वह टूट कर बिलख पड़ा, दिल के उफ़ान में।

"क्यों छेड़ते हो यार"... वह कहने लगा मुझसे,
सब जानते ही हो, फिर कैसा गिला, किससे?

आए भी थे तनहा यहाँ......जाना भी तनहा ही,
अकेलेपन से क्यों शिकवा, अकेलापन भी तनहाई।

ये तनहाई ही है जो, उनकी यादें साथ लाती है,
अकेलेपन में भी हमतक, सितारे-चाँद लाती है।

हजारों लोग नज़र में, अकेला फिर भी क्यों है मन,
कोई जो मन मे बसता है, उसी से है ये खालीपन।

08 जनवरी 2014                                                      ...अजय।