Friday 18 October 2013

पियवा गइल परदेस

पियवा गइल परदेस ...
(एक भोजपूरी  रचना )

मोरे पियवा गईल परदेस, का करीं
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

रोकि नाहि पवलीं कि, जालें ऊ कमाए,
समझाईं मनवां के, समझी ना पावे,
कइसे धोईं अपने मन के,... कलेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

राम जाने कइसन, कवन जुग आइल,
केहि पर भरोसा करीं, जग पगलाइल,
लागे गड़हा  में जाई,... अब ई देस, का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

बिसरे न मनवां से, उनकर  सुरतिया,
शिवजी हमार, हम उनकी परबतिया,
जनि रूसे कबो हमसे,... मोर महेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

अइहें त गंगा जी के, चुनरी चढ़ाइब,
जवन जवन कहिहें, बना के ऊ खियाइब,
पूजब उनके हम बनाके,... गनेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

बाबूजी कि मथवा के पगरी, तूँ धरिह,
अम्मा जी की आसा के, निरासा जनि करिह,
भेजीं हम रोजे,... ई सनेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

मोरे पियवा गईल परदेस, का करीं
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

18 अक्तूबर 2013                                 ...अजय। 

Wednesday 16 October 2013

मैं कमल हूँ...


मैं कमल हूँ...


धूल में लिपटा रहूँ या पंक से सनूँ ,
हूँ कमल मैं, और हर दम ही खिला रहूँ 

धूप हो या छाँव हर मौसम में मैं हँसूं
रंक हो या नृप सभी के हृदय में बसूँ 

मंदिरों में मूर्तियों की अर्चना जब हो
देवता और देवियों की प्रार्थना जब हो 
धूप और दीप की प्रतिअर्पना जब हो
पुष्प और प्रसाद के संग मिल के मैं चढूँ

गम में कोई डूबे तो उसको हौसला मैं दूं
जो हो कोई मजबूर, उसको आसरा मैं दूँ
दुःख दर्द के वनों को सदा काटता चलूँ 
खुद खुश रहूँ मैं  और ख़ुशी बांटता चलूँ 

२५ अगस्त १२                            ...अजय। 

Thursday 10 October 2013

बस प्यार है...

बस प्यार है...

जरा देखिये मेरे यार का ये मेल, कितना धांसू है,
कि चेहरे पे फर्जी गुस्सा, और आँखों मे छुपा आँसू है 
इसे क्या नाम दूँ, .... मैं समझ ना पाऊँ
कभी उसको मैं देखूँ , और कभी नज़रें झुकाऊँ
आप अपनी राय दें, ....मुझे तो एतबार है,
ये और कुछ नहीं, ये तो बस प्यार है।

10 अक्तूबर 13                                           ...अजय । 

Wednesday 9 October 2013

शिकायतों का दौर

शिकायतों का दौर...

चलता रहा शब भर, शिकायतों का दौर कुछ यूँ,
कि होश में आते ही बस, सहर हो गयी,
वो टूट कर बरसे मेरी बाहों में, इस कदर,
कि फेहरिश्त खुद ही घुल के बेनज़र हो गयी।

 09 अक्तूबर 13                                            ...अजय 

Tuesday 1 October 2013

अंततः

अंततः...

कोई साथ न लेकर कभी लाख, करोड़ गया,


सांस छूटी तो हर कोई सब कुछ छोड़ गया....


बटोरता रहा सारी ज़िंदगी जिस शख्स के लिए,


वही अंततः चिता पे, सर को फोड़ गया।


01 अक्तूबर 13                                              ....अजय ।