Tuesday 30 July 2013

सावन के मेघ

सावन के मेघ...

बड़े दिनों के बाद ये सावन के मेघ छाये  हैं,
आज बरसात भी हो जाये... सनम आये हैं...
आज बरसात भी हो जाये... सनम आये हैं।


Monday 29 July 2013

अबकी सावन में

अबकी सावन में...
(भोजपुरी रचना)

भींजी चुनरिया हमार....
अबकी... सावन में
अईहें सजन जी हमार ....
अबकी... सावन में।

जाड़ा भर उनके खबरियो ना आई 
कबो चदरा, कबो ओढ़लीं रजाई,
आ गईली बरखा बहार....
अबकी... सावन में,
भींजी चुनरिया हमार....
अबकी... सावन में।

जेठवा की गरमी से जिया ऊबियाइल
चैन नाही आवे, हमार मन अकुलाइल,
अब आई रिमझिम फुहार....
अबकी... सावन में,
भींजी चुनरिया हमार....
अबकी... सावन में।

29 जुलाई 2013            ...अजय।  

Saturday 27 July 2013

नाक का पानी

नाक का पानी...

एक मित्र ने एक चुनौती-पूर्ण सुझाव दिया 
और हमने भी अपनी मूंछों पर ताव दिया 

तो मूंछ जरा  खिसिया कर बोली 
बात बात में मुझे क्यों ऐंठते हो ?
फालतू में ही पंगे लेते रहते हो,
मिसिर जैसे छुर्री छोड़, चुप क्यों नहीं बैठते हो 

हमने कहा- सुनो तो महारानी 
जरा बंद करो अपनी ये रोनी- गानी
मामला असल में तुम्हारे पड़ोस का था
क्योंकि चुनौती का विषय था " नाक का पानी "

अब सोचो तुम्हारे मुहल्ले की बात थी
मैं चुप कैसे बैठता...? "नाक" पर आघात थी
अब तो कुछ लिख कर ही दिखाऊँगा
जरा सहयोग करो, तो नाक का "पानी" चढ़ाऊंगा

अब हमें लगा, यार ये तो मामला फंस गया
आख बंद कर, कलम उठा, खयाली सोफ़े मे धंस गया
सबसे पहले खयाल में माई सरस्वती आई 
हमने नाक दबा कर एक गहरी डुबकी लगाई

पानी के भीतर से ही उठा एक बुलबुला 
दर-असल बंद नाक से निकला था कोई जुमला
मैंने उसे लपेटने का प्रयास किया .....
तो पाया..." या कुंदेन्दु तुषार हार  धवला......"

आगे अपना लक्ष था... नाक का पानी
तो लो सुनाता हूँ आगे की कहानी ...
आगे मामला जरा सा संगीन है
क्योंकि नाक और पानी का रिश्ता ही नमकीन है

कोई नाक कटने से भयभीत होता है 
कोई पानी उतरने से गमगीन होता है 
'नाक' और 'पानी' दोनों ही "इज्ज़त" पर घात सहते हैं
और एक को भी कष्ट हो तो दोनों साथ साथ बहते हैं ।

26 जुलाई 13                                       ...अजय। 

Wednesday 17 July 2013

बरसात में

बरसात में...

हमें टोकिए न बात बात में,
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में।

सर्दियों ने है चादर ओढ़ाया ,
धूप ने तन को बेहद सताया,
आज आई सुहानी ये बरखा , 
हुये बेकाबू हालात में...
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में।

आओ आगोश में आँख मूँदें,
चाँद से आयीं चांदी सी बूँदें,
हो चला है दीवाना मेरा दिल,
हाथ तो दीजिये हाथ में...
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में। 

हमें टोकिए न बात बात में,
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में।

17 जुलाई 2013                                                               ...अजय. 

एक संकल्प

एक संकल्प ...
(दीपोत्सव पर)

देर नहीं है हुई अभी
आओ लें संकल्प सभी
दीपावली पर्व दीपों का 
दीपों से ही सजे गली 

महके तेल चिरागों का 
ना हो शोर पटाखों का
हवा रहे साफ़ सुथरी ही 
गंध न हो पोटाशों  का 

चोरी और चकारी ना हो
लहू भरी पिचकारी ना हो 
भाई चारे की हो बोली 
कहीं कोई सिसकारी ना हो 

लक्ष्मी जी का आवाहन हो 
घर घर में आरती हवन हो 
गीत खुशी के हर आँगन में 
कहीं न कोई चीख , रुदन, हो 

रोशन हो भारत का हर मन
मिटे अँधेरा, ना हो  क्रंदन 
राजा रंक फ़कीर संत जन 
पुलकित रहें, खिले हर उपवन

17 जुलाई 13                         ....अजय. 


Sunday 7 July 2013

जलन...

जलन... 

दोस्तों को हँसाने की सदा हसरत रही है,
किसी से जलना अपनी फितरत नहीं है,......
जलूँगा सिर्फ एक रोज मैं मगर ,
उस रोज की शायद अभी नीयत नहीं है ।

07 जुलाई 13                                                ...अजय 

मैं-एक चिराग...

मैं-एक चिराग...

क्या इसमे कसूर मेरा है 
अगर चिरागों तले अंधेरा है 
शब भर जलता रहा रोशनी के लिए
मेरी मंज़िल तो बस सवेरा है

मुझ मे लहू जलता रहा
पावन तेल सा बनकर 
हासिल क्यों नहीं होगा 
किस्मत से जो मेरा है 

अगर मैं बुझ भी जाऊँ तो 
मुझे तुम भूल मत जाना
तेरी यादों के सहलाने से 
जी उठेगा, जिन्न मेरा है 

06 जुलाई 13              ...अजय 

Friday 5 July 2013

नया खुलासा ...

नया खुलासा...

हर रोज एक, नया खुलासा है 
आदमी ठगा ठगा सा है
फिर वही...पुराने वादे हैं 
फिर से वही घिसा-पिटा, दिलासा है

हर सुबह, एक नया हादसा है

दिल बुझा बुझा सा है
किस तरह मैं ,छोटी सी कहानी लिखूँ
हर दिन एक नई, कथा सा  है 

कौन किस कार्य का प्रभारी है
किसकी क्या जिम्मेदारी है
ये तो बस वक़्त ही बतलाता है 
कि किसके दिल मे छुपा क्या है

हर चेहरे पे एक नकाब सा है

सारा मामला बे-हिसाब सा है
हर कोई गिनती मे है उलझा हुआ सा 
जैसे उसका कुछ खोया सा है

मेरी थाली में क्या  छुपा सा है ?
दिन रात वो इसे निहारता है 
उसकी तिजोरी मे उसने क्या ठूँसा
इस बात का कहाँ चर्चा सा है 

04 जुलाई 2013                           ...अजय 

मेरी चाँदनी ...

मेरी चाँदनी ...

हम चाँद पर जाने को यूँ बेताब बैठे हैं,
जाने कहाँ है रह गयी वो चांदनी मेरी। 

तन्हाइयों में जब भी मैं निकला हूँ सैर को,
ख़यालात बन के साथ चली जिन्दगी मेरी।

पेशानियों पे जब भी पसीना मेरे छलका,
आँचल लिए देखा उसे है साथ में खड़ी।

मैं उससे लड़ता हूँ , कभी वो मुझसे झगड़ती,
इसी धूप-छाँव से है जिन्दगी हरी- भरी।

खामोश से लबों से जब भी उसको पुकारा,
हाज़िर हुयी सब तोड़ कर लाजों की हथकड़ी।

उसने मेरे वजूद को हर हाल में थामा,
कैसे उसे विदा कहूँ ...वह सांस है मेरी।

03 जुलाई 13                             ...अजय