Thursday 28 November 2013

धर्म या ढोंग ?

धर्म या ढोंग ...?

यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए।

पावन, सनातनी पहन के धर्म का चोला,
कोयल की मधुर धुन में, है काग जो बोला,
छद्म-वेशधारियों को  तो बेशर्म बोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए,
यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए


इंसान है शैतान बन गया गुरूर में,
है फिर रहा मदहोश हो के वह सुरूर में,
जो शैतान बन गए हैं उनके राज खोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए,
यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए

कैसे करेगा भरोसा कोई किसी पे कल ?
सन्यासियों के मन भी अगर हो रहे चंचल,
क्यों भई ढोंग की हवा है गर्म बोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए,
यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए

22 नवंबर 2013                                        ...अजय। 

Monday 18 November 2013

चाँद की यादें

चाँद की यादें...

चाँद गुजरा था, एक रोज, मेरी छत से कभी,
चाँदनी आज भी, तब से, यूं सताती है मुझे।

फूल जो सूख गए थे, रखे किताबों में,

उन से उन हाथों की, हल्की महक, आती है मुझे।

चिट्ठियाँ उसने, लिखी थीं, ...मौन चेहरे से,

पढ़ नहीं पाया, मगर वो अब, याद आती हैं मुझे।

राह कच्ची सी,.... जिस पर वो गुजरते थे कभी,
पय-दर-पय, फिर वही राह, बुलाती है मुझे।

दिल तो कहता है कि, एक रोज मिलेंगे वो फिर,

न जाने कौन सी शै है,... जो डराती है मुझे।

ये भी अच्छा ही हुआ,... कि वो मेरा न हुआ,

तभी तो उसकी, हर अदा, याद आती है मुझे।

 17 नवंबर 13                                               ...अजय।