Monday 9 September 2013

जय हिन्द का नारा

जय हिन्द का नारा ...

जय हिन्द का ये नारा, लगा लीजिये
इस परंपरा को जिंदगी, बना लीजिये
क्या रखा मजहब -ओ- संप्रदायवाद में
कुछ भाई-चारा भी, निभा लीजिये।

इस हिन्द की माटी में है, तन को सँवारा

बहे रक्त हिन्द का, ये है किसको गंवारा
नमक देश का है शामिल, थाली में हमारी
इस नमक का ही हक़, जरा चुका दीजिये।

है जल उठी धरा, हमारे मन की जलन से

सुलग रहा समाज है, हिंसा की अगन से
हो मन में अगर प्यार जरा, अपने वतन से 
तो मन को "सरस्वती-जल", पिला दीजिये।

हिन्द है तो हैं हम, ये ज़हन में रहे

हिन्द का हित सदा, स्मरण में रहे 
ना हो धूमिल चमक, इस चमन की कभी
मैल अपने दिलों का बहा दीजिये।

जय हिन्द का ये नारा लगा लीजिये

इस परंपरा को जिंदगी बना लीजिये

09 सितंबर 2013        ~अजय 'अजेय'।


Saturday 7 September 2013

पुनर्मिलन की साँझ...

३१ अगस्त की शाम...
(पुनर्मिलन की साँझ)

आज की शाम...सज गयी, किसी दुलहिन की तरह,
बीते तीस साल,...... तीस दिन की तरह।

ऐसा लगता है, कल की बात हो ये ...
जब मिले हम थे ,...अजनबी की तरह।

दस महीनों के, ......साथ ने बांधा,
जैसे हों जेल के,........ संगी की तरह।

छूट कर आज मिल रहे हैं, गले लग-लग के
कैसे एक डाल के,...पंछिन की तरह।

जो बिछड़ गए,... वो भी जिंदा हैं,
दिलों मे आज, तिश्नगी (प्यास) की तरह।

अब न छूटेगा साथ ये,... किसी हालत मे भी,
हम तो साथी हैं ,....रात- दिन की तरह।

31 अगस्त 2013 (दिल्ली)                           ... अजय।