Friday 5 July 2013

नया खुलासा ...

नया खुलासा...

हर रोज एक, नया खुलासा है 
आदमी ठगा ठगा सा है
फिर वही...पुराने वादे हैं 
फिर से वही घिसा-पिटा, दिलासा है

हर सुबह, एक नया हादसा है

दिल बुझा बुझा सा है
किस तरह मैं ,छोटी सी कहानी लिखूँ
हर दिन एक नई, कथा सा  है 

कौन किस कार्य का प्रभारी है
किसकी क्या जिम्मेदारी है
ये तो बस वक़्त ही बतलाता है 
कि किसके दिल मे छुपा क्या है

हर चेहरे पे एक नकाब सा है

सारा मामला बे-हिसाब सा है
हर कोई गिनती मे है उलझा हुआ सा 
जैसे उसका कुछ खोया सा है

मेरी थाली में क्या  छुपा सा है ?
दिन रात वो इसे निहारता है 
उसकी तिजोरी मे उसने क्या ठूँसा
इस बात का कहाँ चर्चा सा है 

04 जुलाई 2013                           ...अजय 

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