Wednesday 8 May 2013

गिला-शिकवा

गिला - शिकवा ...
(ग़ज़ल )


जाने किस बात का गिला हमसे,
हो गया है कोई खफ़ा हमसे।

मेरी रुसवाई का सबब बनकर,
मुड़ के बार बार वो मिला हमसे।

बड़ी मुश्किल से, समेटा है जिन्हें,
दिल के टुकड़े, छीनने वो चला हमसे।

नहीं है वक़्त, वो जूनून, वो दीवानापन,
अब न टूटेगा, ये किला हमसे।

अपनी दुनिया में खुश रहो, जानम,
हो गयी राह अब जुदा हमसे।

ताउम्र यों रहेगी , ये कशिश जिन्दा,
न करो इस बात का "शिकवा" हमसे।

29 अप्रैल 13                                      ...अजय 

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