Tuesday 21 May 2013

मेरा गुमान

गुमान ...

मुझे गुमान था ...कि  मैं ही मैं हूँ 

"मय" उतरी तो जाना कि सिर्फ मैं ही मैं हूँ।  

दूर तलक नजर गई, तो कोई करीब न था 

थामना चाहा जब एक हाथ, तो वो नसीब न था।  

झाँका भीतर तो बस,...एक  अकेलापन  था 

गुमान जिसका था, खुदा ही जाने कि, क्या फ़न था।   

पत्ता हूँ टूटा, .....आज मैं शाख का अपनी 

गुनाह इतना, कि मैं हरा नहीं, मुझमें  पीलापन था।

अब... अपने पीलेपन को धोना  चाहता हूँ

मैं आज अपने... " मैं " को खोना चाहता हूँ, 
पर नहीं मिलता वो निर्मल जल कहीं अब,
जिसमें मैं  खुद को .......भिगोना चाहता हूँ। 

20/21 मई 13                                                   .......अजय 

Saturday 11 May 2013

बिजली रानी

बिजली रानी ...

ये आती भी है तो, ख़ुशी को ले कर 
और जाती भी है तो, ख़ुशी को ले कर।

जश्न इसके आने का मनाएं भी क्या,

जाने किस पल ये जाए हमें छोड़ कर।

इससे तो अच्छा था, ये होती ही नहीं,
ना ही उम्मीद बन कर ये ढाती कहर।

वो अच्छी थीं बाँस- ताड़  की पंखियाँ,

जो डुला लेते थे हम किसी भी पहर। 

हाथ-पाँव काट कर, ऐसे घात कर गयी,

अपने संग लेकर आई, कमाल के (यंत्र) जंतर।

झरोखों से हवा भी न आ- जा सके,

ऐसे महलों में रहती है दुल्हन बनकर।

ऐसी दुल्हन की हम तुम न ख्वाहिश करें,

अपने पीपल की छहियाँ हैं इनसे बेहतर।

ढिबरियों  का उजाला, मेरे वश में था,

ये महारानी रहती हैं जाने किधर।

ऐ बालक अगर  है मणी तेरे पास ,

तो इस बेवफा से न उम्मीद कर।

11मई 13                                           ...अजय 

Wednesday 8 May 2013

साला

साला ...


मासूम सा दिखता था, पर उस्ताद था बड़ा,
मेरे गले मे डाल कर, माला चला गया। 

निकले तलाशने थे हम, रेशम कि ओढ़नी,

टाँग कर गले, खादी का, दुशाला चला गया। 

बनते थे हम भी तुर्रम,समझते थे हैं शमशीर,

पर पीठ मे वो कोंच कर भाला चला गया।

चरते थे खुले आम, अपनी मर्जी से हम,

लाकर गले में घर से वो, पगहा झुला गया। 

डब्बे लपेट लाया, लाल पन्नियों मे खूब,

कलाकंद बोल करके, बताशा खिला गया।

किसी की न सुनते थे, जब बोला किए थे हम,

मेरी जुबां पे मार के ताला चला गया। 


जो करीब से देखा, तो "मौन व्रत" दहेज में 
अपनी बहन को ब्याह कर साला चला गया। 

27 अप्रैल 13                                                ...अजय 

गिला-शिकवा

गिला - शिकवा ...
(ग़ज़ल )


जाने किस बात का गिला हमसे,
हो गया है कोई खफ़ा हमसे।

मेरी रुसवाई का सबब बनकर,
मुड़ के बार बार वो मिला हमसे।

बड़ी मुश्किल से, समेटा है जिन्हें,
दिल के टुकड़े, छीनने वो चला हमसे।

नहीं है वक़्त, वो जूनून, वो दीवानापन,
अब न टूटेगा, ये किला हमसे।

अपनी दुनिया में खुश रहो, जानम,
हो गयी राह अब जुदा हमसे।

ताउम्र यों रहेगी , ये कशिश जिन्दा,
न करो इस बात का "शिकवा" हमसे।

29 अप्रैल 13                                      ...अजय