Saturday 20 April 2013

तन्हा सफ़र


तनहा सफ़र ...


कोई होता नहीं है पास, तो वो छेड़े हैं, 
मेरी यादों के समंदर के, वो थपेड़े हैं। 

आते हैं, लौट जाते हैं वो दिले दर से,
कभी भाटा तो कभी ज्वार जैसे टेढ़े हैं।

पिघल गयीं थीं, जब सींचा था प्यार से उनको,
दिल के बगीचे की, कच्ची मेढ़े हैं।

क्यों गुजरता है ये सफ़र तनहा,
उनके नावों से, भरे बेड़े हैं।

20 अप्रैल २०१३       ....अजय 

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