Wednesday 27 March 2013

सूखल बीतेला फगुनवा

सूखल बीतेला फगुनवा ....
                (एक भोजपूरी गीत )


नाहीं अइलें सजनवाँ....हमार ननदो... 
सून लागता आंगानावा, हमार ननदो, 
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो। 

कैसे लागी हमार मनवा, हमार ननदो...
सूखल बीतेला फगुनवा हमार ननदो,
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।

तोहार खोजब हम पहुनवा, हमार ननदो ...
तोहके देइब हम कंगनवा, हमार ननदो॰
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।

नाहीं अइलें सजनवाँ....हमार ननदो... 
सून लागता आंगानावा, हमार ननदो। 
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।
हमार मनसा पूरा द... हमार ननदो
हमरी सइयाँ के बोला द हमार ननदो 
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।

सून लागता आंगानावा, हमार ननदो,
हमरी सइयाँ के बोला द हमार ननदो । 

27 मार्च13                      ....अजय 

Tuesday 26 March 2013

लिट्टी-चोखा


लिट्टी-चोखा ....

रऊरी फूल की करेजा में, झरोखा जब बनी, 
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

चाइनीज न रूचे, ना ही भावे कॉन्टिनेन्टल,
देसी जहाँ दीखे, हम के कर दे ऊ मेंटल,
हम के देइब जनि धोखा, भोजन चोखा जब बनी,
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

कार्ड न चाहीं, नाहीं चाहीं कौनों नेवता,
फोनवा गुमाई लेईइब, फिरीए मे आवता,
हम न करब टोकी-टोका,.....अइसन झोंका जब बनी,
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

हम के देइब जनि धोखा,...खाना चोखा जब बनी,
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

26 मार्च 13                                    ...अजय। 

Sunday 24 March 2013

शातिर था वो....

शातिर था वो...

देखने में तो सीधा, पर शातिर था वो,
अपने फ़न का खूबी से ...माहिर था वो,
जो भी था पर था वो ... कमाल का गुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी। 

आपके और मेरे.... सरोकार की थी,

पर जो थी वो बात...  "बड़े सरकार" की थी, 
महंगाई बढ़ती गयी... दिन रात चौगुनी
पनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

कहने लगा, जन्नत तुम्हें  घुमा दूँगा  मैं,

आसमानों से तारे तोड़, ला दूँगा  मैं,
बस शर्त थी इतनी ..."अगर इस बार भी चुनी "
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

हम-आप को तो वो खुद ही भुला गया,

मैं, मैं, मैं की.... बस घुट्टी पिला गया,
आधुनिक था  "संत" , वो रमा गया धुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

हमने उसे "शायर" कहा...महफिल जमा बैठा,

जलसे में आया, मंच पर वह ऐंठ कर बैठा,
पढ़ने लगा मेरी ही गजल... वह चुनी-चुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

24 मार्च 13                           ~~~अजय । 

Friday 22 March 2013

होली...


मनाएं आज हम होली ...


पठा कर द्वेष की डोली 
उठा यह रंग हमजोली 
निकल आ "बंद कमरे" से, 
मनाएं आज हम होली।

न कोई मन में रंजिश हो 
न कोई भेद हो तन में 
मादक भ्रमर की गुंजन हो 
बस उन्मुक्त उपवन में।

समंदर से उठा कर जल
भरें हम आज पिचकारी
रंगें कश्मीर की रग -रग 
खिले हर फूल की क्यारी।

घुला कर चाय पूरब की
सजा दें पश्चिमी प्याली
इलाहाबाद की गुझिया से
भर दें हिन्द की थाली।
बड़ी उम्मीद से मैने
सजाई है ये रंगोली
निकल के आ तू कमरे से
बनाएं आज फिर टोली।

न कोई धर्म का लफड़ा 
न कोई दंभ की बोली
न कोई खून का कतरा  
हो बस रंगों की ये होली

जरा सी पहल हो तोरी
जरा सी चुहल हो मोरी
मरयादा... रहे कायम 
न बिलखे "गाँव" की छोरी

न टीका मांग का उतरे 
न टूटे हाथ की चूड़ी
न हो नम आँख बापू की
न रोये माँ कोई बूढ़ी

खिला कर भँग की गोली 
बजा दे ढोल अब ढोली 
डूबा कर रंग में सबको 
मनाएं आज हम होली

22 मार्च 13        ...अजय 

Monday 18 March 2013

उम्र पर कश्मकश ...

उम्र पर कश्मकश...

भाई हिरण्यकश्प 
मैं बहन हूँ होलिका 
मैं कर रही हूँ तुमसे 
सिर्फ इतनी इल्तिजा . 

बेख़ौफ़ कह रही हूँ कि 
मुझको नहीं पता ...
तू देने जा रहा मुझे 
किस बात की सजा .

सोलह की हो रही हूँ 
अभी मत मुझे जला ... 
प्रहलाद के लिए तू
खोज और रास्ता .
18 मार्च 13    ...अजय 

Monday 11 March 2013

मुआ "ट्रांस्लिटरेशन"

मुआ "ट्रांसलिटरेशन" ...... 

खता तो नहीं थी, ....पर ये हादसा हुआ,
मैं सुनाता हूँ लो, तुम्हें अब ये वाक़या।

वो फैलने लगे थे, ...किसी खुशबू की तरह,
कि वही मुस्करा उठा, जो करीब से गया ।

बेगम थीं वो बे-फिक्र, और ये दिल का मामला,
हम कर भी क्या पाते, हमारे बस में था भी क्या।

इक जुस्तजू हुई थी....... कि कुछ तारीफ़ में लिखूं 
जो दिल को निचोड़ा तब, निकला यही मिसरा:-

     जरा हौले से गुजरो जी , बड़ी हलचल सी है होती
      जैसे बे-नकाब होने को हो ...बेताब कोई 'मोती '

तकनीक को दूं दोष या फिर खुद को, ऐ खुदा ..
अँगरेजी में लिख कर मैं, था हिन्दी छापने चला।

खुश तो बहुत हुआ हाथ में प्रिंट जब मिला,
गद्गद मैं, बेगम को पढ़ कर लुभाने चला गया। 

कहर तो उस समय बरसा, जब जुबाँ फिसल गई,  
मोती के जगह प्रिंट में था, ...."मोटी" छप गया।

बस लगे चार टांके और एक हुआ ऑपरेशन,
हम आज भी कोसते हैं उसे, "मुआ-ट्रान्सलिटरेशन"। 

11 मार्च 13                                                   ...अजय। 

Saturday 9 March 2013

फगुनी बेयरिया

गुनी बेरिया...(एक भोजपुरी रचना)

उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी 
बहल फगुनी बेयरिया, सतावे मोहनी  

कमरा झुराइ गईलें , सूखलीं रजइया
चादरा से काम चले, सांझे-बिहनईया
नाचे खेतवा में ...फसलिया के मोरनी
उनकी देहियाँ से खुसबू चोरा के चोरनी ....

बरिया के आमवा, हमार बऊरईलें 

फुलवा की खूसबू से मन हरिअईलें,
रतिया भर राखे ई, जगा के बैरनी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी ....

सड़िया पुरान भइल, फाटि गईल चोलिया

कसल  बेलऊँजिया में, खेलब कईसे होलिया
के लेआई  नवकी, झीनदार ओढ़नी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी ....

काहे भेजलीं कमाए, अब तक ऊ न आए

हमके दिनवा न भावे, अउरी रतिया सतावे,
आम्मा जी से ओरहनिया, लगा के जोरनी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी .... 


बहल फगुनी बेयरिया, सतावे मोहनी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी .... 

09 March 13                       .....अजय 

Friday 8 March 2013

बोझिल पलकें


बोझिल पलकें ...

पल-पल छेड़ती है ये दुनिया,
आप भी कुछ सता जाइये ....
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही, 
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 

दिन के सूरज ने तन को तपाया 

चाँद ने शब भर दिल को दुखाया
भीड़ तनहाइयों की, शहर में  
मेरा कोई नहीं इस पहर  में ...
आप  ही शाम  बन आइये...
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये ।


ज़िंदगी भर फिरे जंगलों में , 
आप हाजिर रहे फासलों में
धडकनों ने तराशा था उसको,
पत्थरो पर कुरेदा है जिसको ...
वो ही दिल आज दे जाइये। 
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये ।

धमनियों में, शिराओं में शामिल    

आती जाती हवाओं में दाखिल 
खोजता है जिसे आज भी दिल 
देखना  चाहता है ये संग-दिल 
रोशनी बन के आ जाइये  .....
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 

हैं बगीचों में लौटी बहारें,
खिलती कलियों पे भँवरे पधारें ,
लौट आई फिजाँ गुलशनों में ,
बागबाँ  रोज राहें बुहारें 
आप भी रुख दिखा जाइए...
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 


आप भी कुछ सता जाइये ....
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 


८ मार्च १३                             ......अजय।  

Tuesday 5 March 2013

आख़िर दिल है

आख़िर  दिल है

दिल है ....
दिल है, तो धड़केगा
धड़केगा और फड़केगा 
फड़केगा तो ... कुछ तो हरक़त होगी 
थोड़ी उल्फत ... तो थोड़ी गफलत होगी 
उल्फत है ...तो मोहब्बत होगी 
मोहब्बत हुई तो शोहरत होगी  
शोहरत से कुछ दिल भी जलेंगे 
कुछ कसीदे पढेंगे, तो कुछ हाथ भी मलेंगे 
किसी की जुबाँ पर वो पुराने किस्से होंगे
जिन में शामिल हमारे भी कुछ हिस्से होंगे 
कभी वो मन ही मन में मुस्कुराएंगे 
जब भी ख्यालों में हम उनके आयेंगे 
ये दिल है यारों ...
कभी तो तड़पेगा, 
आखिर ... दिल है
दिल है तो धड़केगा .

५ फरवरी २०१३                                 अजय