Tuesday 31 December 2013

धन्य कुरसिया....

धन्य कुरसिया...

मैं मीरा, तुम श्याम, कुरसिया...

मैं मीरा तुम श्याम ।

आनि परो, मोरी झोरी में,

कछु न मिले जोरा-जोरी में,
जपहुँ नित्य तव नाम, कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया,
मैं मीरा तुम श्याम।

भांति-भांति की, काया तोरी,

जानत हैं सब, माया तोरी,
भांति-भांति के दाम, कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया,
मैं मीरा तुम श्याम।

आजीवन, तुम्हरे गुण गाउँ,

तोहरे आगे, शीश नवाऊँ,
निशि-दिन करूँ सलाम, कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया,
मैं मीरा तुम श्याम।

ग्वाल-बाल सब, फेर परे हैं,

दिवस-रात्रि, सब एक करे हैं,
कइसहुँ बनि जाये काम, कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया,
मैं मीरा तुम श्याम।

मैं तुम्हरी,चुनरी सजवा दूँ,

भव्य एक मंदिर बनवा दूँ,
आनि बसो मोरे ग्राम,कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया,
मैं मीरा तुम श्याम।

धारक तोहरे,खूब सोहाते,

मूरख भी, पंडित बनि गाते,
जाकर तोहरे धाम, कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया,
मैं मीरा तुम श्याम।

तुम हो तो, जीवन में क्या कम,

दूर जात सब कष्ट, दरद, गम,
शत- शत तुम्हें प्रणाम, कुरसिया...
मैं मीरा तुम श्याम...
मैं मीरा, तुम श्याम कुरसिया
मैं मीरा तुम श्याम।

30 दिसंबर 13                     ...अजय।

Tuesday 24 December 2013

बनाइब हम तोहरा के ...

बनाइब हम तोहरा के गंवही से नेता...
(एक भोजपूरी रचना)

का करब जाके, सहरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के... गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के...

खा-पीय, मौज कर... मस्ती तू काट,
जेकरा के मन करे ओकरा के डाँट...
अइसन बनाव बेयरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के...गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के...

जा के सहर में तूँ दिन-रात खटब,
कबो कौनों पाठ, कबो पुस्तक तूँ रटब...
नाहिं मिली तब्बो, नोकरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के...गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के...

बनिके कलेक्टर तूँ केतना कमाइब,
नेता जो बनल त नोट से तौलइब...
भरि जाई घरवा, दुअरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के...गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के...

जो बनि जइब तूँ एस पी, कमिसनर,
जीनिगी गुजरि जाई रटि-रटि "यस सर"...
कौनो आई दे जाई, गरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के...गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के...

छोड़ मोह सहर के, गँउए से पढ़ि ल,
अगिला चुनाव तूँ विधायकी के लड़ि ल...
गाड़ी-बत्ती मिली, सरकरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के...गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के...

सी एम तूँ बनिह हम पी एम बनि जाइब,
काका के हम तोहरी, महा-महिम बनाइब...
"फर्स्ट लेडी" तोहार, महतरिया हो बेटा,
बनाइब हम तोहरा के...गंवही से नेता,
बनाइब हम तोहरा के... 

23दिसंबर १३                             ...अजय । 

Saturday 14 December 2013

हाँ जलता हूँ

हाँ ...जलता हूँ...

वो कहते हैं... मैं जलता हूँ , हाँ ...जलता हूँ।
जब वे बाहों मे बाहें डाले फिरते हैं,
और मैं तनहा चलता हूँ...
हाँ, ...जलता हूँ।

वे हँसते हैं, वे गाते हैं, वे सारे जश्न मनाते हैं 
सब साथ बैठ कर प्रेम से बातें करते हैं ...
मैं खाली हाथ मसलता हूँ ...
हाँ, ... जलता हूँ।

कोई खाता है , कोई पीता है,हर शख्स यहाँ पर जीता  है,
जब प्रेम के पंछी मिल, कोलाहल करते हैं,
मैं मौन के घूंट निगलता हूँ, 
हाँ जलता हूँ.....

वे तोलते हैं मैं तुलता हूँ , हर रोज तराजू चढ़ता हूँ,
जब प्रेम से वो अपनों के गले से लगते हैं,
मैं रोज स्वयं को छलता हूँ 
हाँ, ...जलता हूँ।

13 दिसंबर 2013                                      ...अजय

Thursday 28 November 2013

धर्म या ढोंग ?

धर्म या ढोंग ...?

यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए।

पावन, सनातनी पहन के धर्म का चोला,
कोयल की मधुर धुन में, है काग जो बोला,
छद्म-वेशधारियों को  तो बेशर्म बोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए,
यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए


इंसान है शैतान बन गया गुरूर में,
है फिर रहा मदहोश हो के वह सुरूर में,
जो शैतान बन गए हैं उनके राज खोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए,
यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए

कैसे करेगा भरोसा कोई किसी पे कल ?
सन्यासियों के मन भी अगर हो रहे चंचल,
क्यों भई ढोंग की हवा है गर्म बोलिए,
प्रवचन-भजन की आड़ में कुकर्म बोलिए,
यह धर्म है ?... तो क्या हो अधर्म बोलिए

22 नवंबर 2013                                        ...अजय। 

Monday 18 November 2013

चाँद की यादें

चाँद की यादें...

चाँद गुजरा था, एक रोज, मेरी छत से कभी,
चाँदनी आज भी, तब से, यूं सताती है मुझे।

फूल जो सूख गए थे, रखे किताबों में,

उन से उन हाथों की, हल्की महक, आती है मुझे।

चिट्ठियाँ उसने, लिखी थीं, ...मौन चेहरे से,

पढ़ नहीं पाया, मगर वो अब, याद आती हैं मुझे।

राह कच्ची सी,.... जिस पर वो गुजरते थे कभी,
पय-दर-पय, फिर वही राह, बुलाती है मुझे।

दिल तो कहता है कि, एक रोज मिलेंगे वो फिर,

न जाने कौन सी शै है,... जो डराती है मुझे।

ये भी अच्छा ही हुआ,... कि वो मेरा न हुआ,

तभी तो उसकी, हर अदा, याद आती है मुझे।

 17 नवंबर 13                                               ...अजय।  

Friday 18 October 2013

पियवा गइल परदेस

पियवा गइल परदेस ...
(एक भोजपूरी  रचना )

मोरे पियवा गईल परदेस, का करीं
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

रोकि नाहि पवलीं कि, जालें ऊ कमाए,
समझाईं मनवां के, समझी ना पावे,
कइसे धोईं अपने मन के,... कलेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

राम जाने कइसन, कवन जुग आइल,
केहि पर भरोसा करीं, जग पगलाइल,
लागे गड़हा  में जाई,... अब ई देस, का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

बिसरे न मनवां से, उनकर  सुरतिया,
शिवजी हमार, हम उनकी परबतिया,
जनि रूसे कबो हमसे,... मोर महेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

अइहें त गंगा जी के, चुनरी चढ़ाइब,
जवन जवन कहिहें, बना के ऊ खियाइब,
पूजब उनके हम बनाके,... गनेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

बाबूजी कि मथवा के पगरी, तूँ धरिह,
अम्मा जी की आसा के, निरासा जनि करिह,
भेजीं हम रोजे,... ई सनेस का करीं,
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

मोरे पियवा गईल परदेस, का करीं
मति धरें कहीं बाबावा के भेस, का करीं।

18 अक्तूबर 2013                                 ...अजय। 

Wednesday 16 October 2013

मैं कमल हूँ...


मैं कमल हूँ...


धूल में लिपटा रहूँ या पंक से सनूँ ,
हूँ कमल मैं, और हर दम ही खिला रहूँ 

धूप हो या छाँव हर मौसम में मैं हँसूं
रंक हो या नृप सभी के हृदय में बसूँ 

मंदिरों में मूर्तियों की अर्चना जब हो
देवता और देवियों की प्रार्थना जब हो 
धूप और दीप की प्रतिअर्पना जब हो
पुष्प और प्रसाद के संग मिल के मैं चढूँ

गम में कोई डूबे तो उसको हौसला मैं दूं
जो हो कोई मजबूर, उसको आसरा मैं दूँ
दुःख दर्द के वनों को सदा काटता चलूँ 
खुद खुश रहूँ मैं  और ख़ुशी बांटता चलूँ 

२५ अगस्त १२                            ...अजय। 

Thursday 10 October 2013

बस प्यार है...

बस प्यार है...

जरा देखिये मेरे यार का ये मेल, कितना धांसू है,
कि चेहरे पे फर्जी गुस्सा, और आँखों मे छुपा आँसू है 
इसे क्या नाम दूँ, .... मैं समझ ना पाऊँ
कभी उसको मैं देखूँ , और कभी नज़रें झुकाऊँ
आप अपनी राय दें, ....मुझे तो एतबार है,
ये और कुछ नहीं, ये तो बस प्यार है।

10 अक्तूबर 13                                           ...अजय । 

Wednesday 9 October 2013

शिकायतों का दौर

शिकायतों का दौर...

चलता रहा शब भर, शिकायतों का दौर कुछ यूँ,
कि होश में आते ही बस, सहर हो गयी,
वो टूट कर बरसे मेरी बाहों में, इस कदर,
कि फेहरिश्त खुद ही घुल के बेनज़र हो गयी।

 09 अक्तूबर 13                                            ...अजय 

Tuesday 1 October 2013

अंततः

अंततः...

कोई साथ न लेकर कभी लाख, करोड़ गया,


सांस छूटी तो हर कोई सब कुछ छोड़ गया....


बटोरता रहा सारी ज़िंदगी जिस शख्स के लिए,


वही अंततः चिता पे, सर को फोड़ गया।


01 अक्तूबर 13                                              ....अजय ।  

Monday 9 September 2013

जय हिन्द का नारा

जय हिन्द का नारा ...

जय हिन्द का ये नारा, लगा लीजिये
इस परंपरा को जिंदगी, बना लीजिये
क्या रखा मजहब -ओ- संप्रदायवाद में
कुछ भाई-चारा भी, निभा लीजिये।

इस हिन्द की माटी में है, तन को सँवारा

बहे रक्त हिन्द का, ये है किसको गंवारा
नमक देश का है शामिल, थाली में हमारी
इस नमक का ही हक़, जरा चुका दीजिये।

है जल उठी धरा, हमारे मन की जलन से

सुलग रहा समाज है, हिंसा की अगन से
हो मन में अगर प्यार जरा, अपने वतन से 
तो मन को "सरस्वती-जल", पिला दीजिये।

हिन्द है तो हैं हम, ये ज़हन में रहे

हिन्द का हित सदा, स्मरण में रहे 
ना हो धूमिल चमक, इस चमन की कभी
मैल अपने दिलों का बहा दीजिये।

जय हिन्द का ये नारा लगा लीजिये

इस परंपरा को जिंदगी बना लीजिये

09 सितंबर 2013        ~अजय 'अजेय'।


Saturday 7 September 2013

पुनर्मिलन की साँझ...

३१ अगस्त की शाम...
(पुनर्मिलन की साँझ)

आज की शाम...सज गयी, किसी दुलहिन की तरह,
बीते तीस साल,...... तीस दिन की तरह।

ऐसा लगता है, कल की बात हो ये ...
जब मिले हम थे ,...अजनबी की तरह।

दस महीनों के, ......साथ ने बांधा,
जैसे हों जेल के,........ संगी की तरह।

छूट कर आज मिल रहे हैं, गले लग-लग के
कैसे एक डाल के,...पंछिन की तरह।

जो बिछड़ गए,... वो भी जिंदा हैं,
दिलों मे आज, तिश्नगी (प्यास) की तरह।

अब न छूटेगा साथ ये,... किसी हालत मे भी,
हम तो साथी हैं ,....रात- दिन की तरह।

31 अगस्त 2013 (दिल्ली)                           ... अजय। 

Monday 5 August 2013

इंसानियत की बात करें

इंसानियत की बात करें ...
(15 अगस्त के शुभ अवसर हेतु )

किसलिए हम हिन्दुत्व, मुसलमानियत की बात करें,

हिन्दुस्तानी हैं तो.... हिंदुस्तानियत की बात करें।

बाँटने को हमको तो, यहाँ  हाजिर हैं हजारों,

आओ एक होकर कुछ ... इंसानियत की बात करें।

कोई "जात" उछालता, कोई "मजहब" की गाता है,

भारत के निवासी हैं तो ... भारतीयत की ही बात करें।

जो तोड़ने आयें हमें... हम उनको तोड़ दें, 

जुड़ने की करो बात तो, हम सियासत की बात करें।

निरपेक्षता के नाम का , रोना है बेमानी,
सर्व-धर्म का सम्मान, और साहचर्य आत्मसात करें।

हो पंदरह अगस्त, या छब्बीस जनवरी,

भयहीन हों सब जश्न , क्यूँ कुर्बानियत की बात करें।

जो हैं हमारे साथ, सब हिन्दोस्तां के हैं 

जगाकर आज ये जज़्बा हम एकात्मीयत की बात करें।

शामिल है नमक खून में, भारत की भूमि का,

आओ इस नमक के, हक़-अदाइयत की बात करें।

चोरों की तरह घात करना हमको ना आया,

दोगली जुबान नहीं, खुल्लम-खुल्ला बात करें।

05 अगस्त 2013                              ...अजय।

Tuesday 30 July 2013

सावन के मेघ

सावन के मेघ...

बड़े दिनों के बाद ये सावन के मेघ छाये  हैं,
आज बरसात भी हो जाये... सनम आये हैं...
आज बरसात भी हो जाये... सनम आये हैं।


Monday 29 July 2013

अबकी सावन में

अबकी सावन में...
(भोजपुरी रचना)

भींजी चुनरिया हमार....
अबकी... सावन में
अईहें सजन जी हमार ....
अबकी... सावन में।

जाड़ा भर उनके खबरियो ना आई 
कबो चदरा, कबो ओढ़लीं रजाई,
आ गईली बरखा बहार....
अबकी... सावन में,
भींजी चुनरिया हमार....
अबकी... सावन में।

जेठवा की गरमी से जिया ऊबियाइल
चैन नाही आवे, हमार मन अकुलाइल,
अब आई रिमझिम फुहार....
अबकी... सावन में,
भींजी चुनरिया हमार....
अबकी... सावन में।

29 जुलाई 2013            ...अजय।  

Saturday 27 July 2013

नाक का पानी

नाक का पानी...

एक मित्र ने एक चुनौती-पूर्ण सुझाव दिया 
और हमने भी अपनी मूंछों पर ताव दिया 

तो मूंछ जरा  खिसिया कर बोली 
बात बात में मुझे क्यों ऐंठते हो ?
फालतू में ही पंगे लेते रहते हो,
मिसिर जैसे छुर्री छोड़, चुप क्यों नहीं बैठते हो 

हमने कहा- सुनो तो महारानी 
जरा बंद करो अपनी ये रोनी- गानी
मामला असल में तुम्हारे पड़ोस का था
क्योंकि चुनौती का विषय था " नाक का पानी "

अब सोचो तुम्हारे मुहल्ले की बात थी
मैं चुप कैसे बैठता...? "नाक" पर आघात थी
अब तो कुछ लिख कर ही दिखाऊँगा
जरा सहयोग करो, तो नाक का "पानी" चढ़ाऊंगा

अब हमें लगा, यार ये तो मामला फंस गया
आख बंद कर, कलम उठा, खयाली सोफ़े मे धंस गया
सबसे पहले खयाल में माई सरस्वती आई 
हमने नाक दबा कर एक गहरी डुबकी लगाई

पानी के भीतर से ही उठा एक बुलबुला 
दर-असल बंद नाक से निकला था कोई जुमला
मैंने उसे लपेटने का प्रयास किया .....
तो पाया..." या कुंदेन्दु तुषार हार  धवला......"

आगे अपना लक्ष था... नाक का पानी
तो लो सुनाता हूँ आगे की कहानी ...
आगे मामला जरा सा संगीन है
क्योंकि नाक और पानी का रिश्ता ही नमकीन है

कोई नाक कटने से भयभीत होता है 
कोई पानी उतरने से गमगीन होता है 
'नाक' और 'पानी' दोनों ही "इज्ज़त" पर घात सहते हैं
और एक को भी कष्ट हो तो दोनों साथ साथ बहते हैं ।

26 जुलाई 13                                       ...अजय। 

Wednesday 17 July 2013

बरसात में

बरसात में...

हमें टोकिए न बात बात में,
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में।

सर्दियों ने है चादर ओढ़ाया ,
धूप ने तन को बेहद सताया,
आज आई सुहानी ये बरखा , 
हुये बेकाबू हालात में...
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में।

आओ आगोश में आँख मूँदें,
चाँद से आयीं चांदी सी बूँदें,
हो चला है दीवाना मेरा दिल,
हाथ तो दीजिये हाथ में...
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में। 

हमें टोकिए न बात बात में,
आज भीगेंगे बरसात में ... आज भीगेंगे बरसात में।

17 जुलाई 2013                                                               ...अजय. 

एक संकल्प

एक संकल्प ...
(दीपोत्सव पर)

देर नहीं है हुई अभी
आओ लें संकल्प सभी
दीपावली पर्व दीपों का 
दीपों से ही सजे गली 

महके तेल चिरागों का 
ना हो शोर पटाखों का
हवा रहे साफ़ सुथरी ही 
गंध न हो पोटाशों  का 

चोरी और चकारी ना हो
लहू भरी पिचकारी ना हो 
भाई चारे की हो बोली 
कहीं कोई सिसकारी ना हो 

लक्ष्मी जी का आवाहन हो 
घर घर में आरती हवन हो 
गीत खुशी के हर आँगन में 
कहीं न कोई चीख , रुदन, हो 

रोशन हो भारत का हर मन
मिटे अँधेरा, ना हो  क्रंदन 
राजा रंक फ़कीर संत जन 
पुलकित रहें, खिले हर उपवन

17 जुलाई 13                         ....अजय. 


Sunday 7 July 2013

जलन...

जलन... 

दोस्तों को हँसाने की सदा हसरत रही है,
किसी से जलना अपनी फितरत नहीं है,......
जलूँगा सिर्फ एक रोज मैं मगर ,
उस रोज की शायद अभी नीयत नहीं है ।

07 जुलाई 13                                                ...अजय 

मैं-एक चिराग...

मैं-एक चिराग...

क्या इसमे कसूर मेरा है 
अगर चिरागों तले अंधेरा है 
शब भर जलता रहा रोशनी के लिए
मेरी मंज़िल तो बस सवेरा है

मुझ मे लहू जलता रहा
पावन तेल सा बनकर 
हासिल क्यों नहीं होगा 
किस्मत से जो मेरा है 

अगर मैं बुझ भी जाऊँ तो 
मुझे तुम भूल मत जाना
तेरी यादों के सहलाने से 
जी उठेगा, जिन्न मेरा है 

06 जुलाई 13              ...अजय 

Friday 5 July 2013

नया खुलासा ...

नया खुलासा...

हर रोज एक, नया खुलासा है 
आदमी ठगा ठगा सा है
फिर वही...पुराने वादे हैं 
फिर से वही घिसा-पिटा, दिलासा है

हर सुबह, एक नया हादसा है

दिल बुझा बुझा सा है
किस तरह मैं ,छोटी सी कहानी लिखूँ
हर दिन एक नई, कथा सा  है 

कौन किस कार्य का प्रभारी है
किसकी क्या जिम्मेदारी है
ये तो बस वक़्त ही बतलाता है 
कि किसके दिल मे छुपा क्या है

हर चेहरे पे एक नकाब सा है

सारा मामला बे-हिसाब सा है
हर कोई गिनती मे है उलझा हुआ सा 
जैसे उसका कुछ खोया सा है

मेरी थाली में क्या  छुपा सा है ?
दिन रात वो इसे निहारता है 
उसकी तिजोरी मे उसने क्या ठूँसा
इस बात का कहाँ चर्चा सा है 

04 जुलाई 2013                           ...अजय 

मेरी चाँदनी ...

मेरी चाँदनी ...

हम चाँद पर जाने को यूँ बेताब बैठे हैं,
जाने कहाँ है रह गयी वो चांदनी मेरी। 

तन्हाइयों में जब भी मैं निकला हूँ सैर को,
ख़यालात बन के साथ चली जिन्दगी मेरी।

पेशानियों पे जब भी पसीना मेरे छलका,
आँचल लिए देखा उसे है साथ में खड़ी।

मैं उससे लड़ता हूँ , कभी वो मुझसे झगड़ती,
इसी धूप-छाँव से है जिन्दगी हरी- भरी।

खामोश से लबों से जब भी उसको पुकारा,
हाज़िर हुयी सब तोड़ कर लाजों की हथकड़ी।

उसने मेरे वजूद को हर हाल में थामा,
कैसे उसे विदा कहूँ ...वह सांस है मेरी।

03 जुलाई 13                             ...अजय

Tuesday 21 May 2013

मेरा गुमान

गुमान ...

मुझे गुमान था ...कि  मैं ही मैं हूँ 

"मय" उतरी तो जाना कि सिर्फ मैं ही मैं हूँ।  

दूर तलक नजर गई, तो कोई करीब न था 

थामना चाहा जब एक हाथ, तो वो नसीब न था।  

झाँका भीतर तो बस,...एक  अकेलापन  था 

गुमान जिसका था, खुदा ही जाने कि, क्या फ़न था।   

पत्ता हूँ टूटा, .....आज मैं शाख का अपनी 

गुनाह इतना, कि मैं हरा नहीं, मुझमें  पीलापन था।

अब... अपने पीलेपन को धोना  चाहता हूँ

मैं आज अपने... " मैं " को खोना चाहता हूँ, 
पर नहीं मिलता वो निर्मल जल कहीं अब,
जिसमें मैं  खुद को .......भिगोना चाहता हूँ। 

20/21 मई 13                                                   .......अजय 

Saturday 11 May 2013

बिजली रानी

बिजली रानी ...

ये आती भी है तो, ख़ुशी को ले कर 
और जाती भी है तो, ख़ुशी को ले कर।

जश्न इसके आने का मनाएं भी क्या,

जाने किस पल ये जाए हमें छोड़ कर।

इससे तो अच्छा था, ये होती ही नहीं,
ना ही उम्मीद बन कर ये ढाती कहर।

वो अच्छी थीं बाँस- ताड़  की पंखियाँ,

जो डुला लेते थे हम किसी भी पहर। 

हाथ-पाँव काट कर, ऐसे घात कर गयी,

अपने संग लेकर आई, कमाल के (यंत्र) जंतर।

झरोखों से हवा भी न आ- जा सके,

ऐसे महलों में रहती है दुल्हन बनकर।

ऐसी दुल्हन की हम तुम न ख्वाहिश करें,

अपने पीपल की छहियाँ हैं इनसे बेहतर।

ढिबरियों  का उजाला, मेरे वश में था,

ये महारानी रहती हैं जाने किधर।

ऐ बालक अगर  है मणी तेरे पास ,

तो इस बेवफा से न उम्मीद कर।

11मई 13                                           ...अजय 

Wednesday 8 May 2013

साला

साला ...


मासूम सा दिखता था, पर उस्ताद था बड़ा,
मेरे गले मे डाल कर, माला चला गया। 

निकले तलाशने थे हम, रेशम कि ओढ़नी,

टाँग कर गले, खादी का, दुशाला चला गया। 

बनते थे हम भी तुर्रम,समझते थे हैं शमशीर,

पर पीठ मे वो कोंच कर भाला चला गया।

चरते थे खुले आम, अपनी मर्जी से हम,

लाकर गले में घर से वो, पगहा झुला गया। 

डब्बे लपेट लाया, लाल पन्नियों मे खूब,

कलाकंद बोल करके, बताशा खिला गया।

किसी की न सुनते थे, जब बोला किए थे हम,

मेरी जुबां पे मार के ताला चला गया। 


जो करीब से देखा, तो "मौन व्रत" दहेज में 
अपनी बहन को ब्याह कर साला चला गया। 

27 अप्रैल 13                                                ...अजय 

गिला-शिकवा

गिला - शिकवा ...
(ग़ज़ल )


जाने किस बात का गिला हमसे,
हो गया है कोई खफ़ा हमसे।

मेरी रुसवाई का सबब बनकर,
मुड़ के बार बार वो मिला हमसे।

बड़ी मुश्किल से, समेटा है जिन्हें,
दिल के टुकड़े, छीनने वो चला हमसे।

नहीं है वक़्त, वो जूनून, वो दीवानापन,
अब न टूटेगा, ये किला हमसे।

अपनी दुनिया में खुश रहो, जानम,
हो गयी राह अब जुदा हमसे।

ताउम्र यों रहेगी , ये कशिश जिन्दा,
न करो इस बात का "शिकवा" हमसे।

29 अप्रैल 13                                      ...अजय 

Thursday 25 April 2013

पुरानी चवन्नी

पुरानी चवन्नी ...

यार देखो हैं कैसे, दीवाने भले ...
ले पुरानी चवन्नी भुनाने चले।

कर में दर्पण, और स्याही, विशाल तूलिका ...

आज कुदरती सफेदी छुपाने चले।

कहीं पोल करीबी से, कभी खुल ही न जाय ...

नयन दूर - दूर ही से लड़ाने चले।

बुढ़ाता सा गाल, क्रीम से, नहला - धुला लिया ...

कागजी अब जवानी जताने चले।

चुगलियाँ, बढ़ा उदर चाहे जितनी करे ... 

कमर-पट्टी से चौड़ी दबाने चले।

इतने में कहीं पीछे, पटाखा बजा ...

भाग कर अपना जीवन बचाने चले।

सांस उखड़ने लगी, हाँफने लग पड़े ...

हाले दिल अपना जब वो बताने चले।

जो उजाला सफेदी के संग आया है ...

हैं सियाही में क्यों हम डुबाने चले।

बूढ़ी घोड़ी जवाँ, कैसे होगी भला ...

उल्टी गंगा हैं क्यों हम बहाने चले।

25 अप्रैल 13                    ...अजय.

Wednesday 24 April 2013

एक नयी कार

एक नयी कार...?

आज कल जिसने बड़ी धूम सी मचाई है 
सुना है कि शहर में एक कार नई आई है। 

इसका मॉडल...  अत्यंत ही खास है 
क्योंकि इसे खरीदने का प्राधिकार.....
तो बस "लाचार व्यक्ति" के पास है।

इस ब्रांड की एजेन्सियां ... जमीन पे नहीं, 
तंग "खयाली" गलियों मे हैं ...
मगर खरीद-दारों  के मुकाम  ...
उल्लसित,कुसुमित,सकुचाई "कलियों" मे हैं।

सेल्समेन को देखकर... पहले तो, 
कुछ भी ज़ाहिर नहीं होता...क्योकि...
यदि ऐसा हो जाये तो ...
वो अपने "फन" मे माहिर नहीं होता।

खरीद-दारों के भी विभिन्न भेद ...
'आह' है, 'उफ़्फ़' है, 'आउच' है ,
और एक विशेष दर्जा ---
जिसका नाम 'कास्टिंग काउच' है।

सोच रहे होंगे न आप ...
कि अब तक इसे क्यों नहीं देखा है ?
अरे भई, 'कांसेप्ट' कार है ... 
जिसके हर "रंग" मे धोखा है ।

चलिये, अब मैं खुद ही ये पर्दा हटा दूँ ,
क्योंकि हर हृदय बेकरार है ...
दोस्तों ये और कुछ नहीं, ...बस
मन आहत करने वाला एक व्यभिचार है,

विकृत ख़यालों  का वंशज...
गुनाह कि जवां होती संतान ...
माँ, बहन, मासूम बेटियों का घातक ...
जिसका नाम.....  "बलात्कार" है ।
हाँ  ...यही वो नयी कार है 
>
>
और अंत मे सबसे निवेदन........
>
एजेंसी वालों---बंद करो यह व्यापार,
सेल्समेन -----ग्राहक मत फंसाओ यार,
मीडिया---------न करो झूठा प्रचार,
आप सब-------जरा सतर्क...खबरदार,
खरीद-दार----- न खोजिए,न खरीदिए "नई कार"
नमस्कार... नमस्कार ...नमस्कार। 

24 अप्रैल 2013               ...अजय 

Saturday 20 April 2013

तन्हा सफ़र


तनहा सफ़र ...


कोई होता नहीं है पास, तो वो छेड़े हैं, 
मेरी यादों के समंदर के, वो थपेड़े हैं। 

आते हैं, लौट जाते हैं वो दिले दर से,
कभी भाटा तो कभी ज्वार जैसे टेढ़े हैं।

पिघल गयीं थीं, जब सींचा था प्यार से उनको,
दिल के बगीचे की, कच्ची मेढ़े हैं।

क्यों गुजरता है ये सफ़र तनहा,
उनके नावों से, भरे बेड़े हैं।

20 अप्रैल २०१३       ....अजय 

Tuesday 2 April 2013

पटाखे ऊंची गलियों के


"पटाखे" ऊँची गलियों के ....

बस हम-तुम लगातार फटते रहें ...?
फिर वो ऊँची गली के पटाखों का क्या ?

ना तो वो ही गए ...ना ही ये जाएँगे,
तो फिर, इतनी मोटी, सलाखों  का क्या ?

आती-जाती रहे अगर ताज़ी हवा,
तो  अंधेरी गुफा मे सूराखों का क्या ?

उनकी बातों मे खनखन तो रंजिश की है,
प्यार आँखों मे हो, तो भी आँखों का क्या ?

चैन लाखों घरों का मिटा के गए ,
लाख दे के भी जाएँ, तो लाखों का क्या ?

01 अप्रैल 13                    ... अजय 

Wednesday 27 March 2013

सूखल बीतेला फगुनवा

सूखल बीतेला फगुनवा ....
                (एक भोजपूरी गीत )


नाहीं अइलें सजनवाँ....हमार ननदो... 
सून लागता आंगानावा, हमार ननदो, 
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो। 

कैसे लागी हमार मनवा, हमार ननदो...
सूखल बीतेला फगुनवा हमार ननदो,
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।

तोहार खोजब हम पहुनवा, हमार ननदो ...
तोहके देइब हम कंगनवा, हमार ननदो॰
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।

नाहीं अइलें सजनवाँ....हमार ननदो... 
सून लागता आंगानावा, हमार ननदो। 
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।
हमार मनसा पूरा द... हमार ननदो
हमरी सइयाँ के बोला द हमार ननदो 
तनी मान मोर कहानवा...हमार ननदो॰
अपनी भइया के बोला द हमार ननदो।

सून लागता आंगानावा, हमार ननदो,
हमरी सइयाँ के बोला द हमार ननदो । 

27 मार्च13                      ....अजय 

Tuesday 26 March 2013

लिट्टी-चोखा


लिट्टी-चोखा ....

रऊरी फूल की करेजा में, झरोखा जब बनी, 
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

चाइनीज न रूचे, ना ही भावे कॉन्टिनेन्टल,
देसी जहाँ दीखे, हम के कर दे ऊ मेंटल,
हम के देइब जनि धोखा, भोजन चोखा जब बनी,
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

कार्ड न चाहीं, नाहीं चाहीं कौनों नेवता,
फोनवा गुमाई लेईइब, फिरीए मे आवता,
हम न करब टोकी-टोका,.....अइसन झोंका जब बनी,
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

हम के देइब जनि धोखा,...खाना चोखा जब बनी,
हम न चूकब आपन मौका, लिट्टी-चोखा जब बनी।

26 मार्च 13                                    ...अजय। 

Sunday 24 March 2013

शातिर था वो....

शातिर था वो...

देखने में तो सीधा, पर शातिर था वो,
अपने फ़न का खूबी से ...माहिर था वो,
जो भी था पर था वो ... कमाल का गुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी। 

आपके और मेरे.... सरोकार की थी,

पर जो थी वो बात...  "बड़े सरकार" की थी, 
महंगाई बढ़ती गयी... दिन रात चौगुनी
पनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

कहने लगा, जन्नत तुम्हें  घुमा दूँगा  मैं,

आसमानों से तारे तोड़, ला दूँगा  मैं,
बस शर्त थी इतनी ..."अगर इस बार भी चुनी "
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

हम-आप को तो वो खुद ही भुला गया,

मैं, मैं, मैं की.... बस घुट्टी पिला गया,
आधुनिक था  "संत" , वो रमा गया धुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

हमने उसे "शायर" कहा...महफिल जमा बैठा,

जलसे में आया, मंच पर वह ऐंठ कर बैठा,
पढ़ने लगा मेरी ही गजल... वह चुनी-चुनी
अपनी तो कह गया वो...मेरी नहीं सुनी।

24 मार्च 13                           ~~~अजय । 

Friday 22 March 2013

होली...


मनाएं आज हम होली ...


पठा कर द्वेष की डोली 
उठा यह रंग हमजोली 
निकल आ "बंद कमरे" से, 
मनाएं आज हम होली।

न कोई मन में रंजिश हो 
न कोई भेद हो तन में 
मादक भ्रमर की गुंजन हो 
बस उन्मुक्त उपवन में।

समंदर से उठा कर जल
भरें हम आज पिचकारी
रंगें कश्मीर की रग -रग 
खिले हर फूल की क्यारी।

घुला कर चाय पूरब की
सजा दें पश्चिमी प्याली
इलाहाबाद की गुझिया से
भर दें हिन्द की थाली।
बड़ी उम्मीद से मैने
सजाई है ये रंगोली
निकल के आ तू कमरे से
बनाएं आज फिर टोली।

न कोई धर्म का लफड़ा 
न कोई दंभ की बोली
न कोई खून का कतरा  
हो बस रंगों की ये होली

जरा सी पहल हो तोरी
जरा सी चुहल हो मोरी
मरयादा... रहे कायम 
न बिलखे "गाँव" की छोरी

न टीका मांग का उतरे 
न टूटे हाथ की चूड़ी
न हो नम आँख बापू की
न रोये माँ कोई बूढ़ी

खिला कर भँग की गोली 
बजा दे ढोल अब ढोली 
डूबा कर रंग में सबको 
मनाएं आज हम होली

22 मार्च 13        ...अजय 

Monday 18 March 2013

उम्र पर कश्मकश ...

उम्र पर कश्मकश...

भाई हिरण्यकश्प 
मैं बहन हूँ होलिका 
मैं कर रही हूँ तुमसे 
सिर्फ इतनी इल्तिजा . 

बेख़ौफ़ कह रही हूँ कि 
मुझको नहीं पता ...
तू देने जा रहा मुझे 
किस बात की सजा .

सोलह की हो रही हूँ 
अभी मत मुझे जला ... 
प्रहलाद के लिए तू
खोज और रास्ता .
18 मार्च 13    ...अजय 

Monday 11 March 2013

मुआ "ट्रांस्लिटरेशन"

मुआ "ट्रांसलिटरेशन" ...... 

खता तो नहीं थी, ....पर ये हादसा हुआ,
मैं सुनाता हूँ लो, तुम्हें अब ये वाक़या।

वो फैलने लगे थे, ...किसी खुशबू की तरह,
कि वही मुस्करा उठा, जो करीब से गया ।

बेगम थीं वो बे-फिक्र, और ये दिल का मामला,
हम कर भी क्या पाते, हमारे बस में था भी क्या।

इक जुस्तजू हुई थी....... कि कुछ तारीफ़ में लिखूं 
जो दिल को निचोड़ा तब, निकला यही मिसरा:-

     जरा हौले से गुजरो जी , बड़ी हलचल सी है होती
      जैसे बे-नकाब होने को हो ...बेताब कोई 'मोती '

तकनीक को दूं दोष या फिर खुद को, ऐ खुदा ..
अँगरेजी में लिख कर मैं, था हिन्दी छापने चला।

खुश तो बहुत हुआ हाथ में प्रिंट जब मिला,
गद्गद मैं, बेगम को पढ़ कर लुभाने चला गया। 

कहर तो उस समय बरसा, जब जुबाँ फिसल गई,  
मोती के जगह प्रिंट में था, ...."मोटी" छप गया।

बस लगे चार टांके और एक हुआ ऑपरेशन,
हम आज भी कोसते हैं उसे, "मुआ-ट्रान्सलिटरेशन"। 

11 मार्च 13                                                   ...अजय। 

Saturday 9 March 2013

फगुनी बेयरिया

गुनी बेरिया...(एक भोजपुरी रचना)

उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी 
बहल फगुनी बेयरिया, सतावे मोहनी  

कमरा झुराइ गईलें , सूखलीं रजइया
चादरा से काम चले, सांझे-बिहनईया
नाचे खेतवा में ...फसलिया के मोरनी
उनकी देहियाँ से खुसबू चोरा के चोरनी ....

बरिया के आमवा, हमार बऊरईलें 

फुलवा की खूसबू से मन हरिअईलें,
रतिया भर राखे ई, जगा के बैरनी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी ....

सड़िया पुरान भइल, फाटि गईल चोलिया

कसल  बेलऊँजिया में, खेलब कईसे होलिया
के लेआई  नवकी, झीनदार ओढ़नी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी ....

काहे भेजलीं कमाए, अब तक ऊ न आए

हमके दिनवा न भावे, अउरी रतिया सतावे,
आम्मा जी से ओरहनिया, लगा के जोरनी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी .... 


बहल फगुनी बेयरिया, सतावे मोहनी 
उनकी देहियाँ से खुसबू, चोरा के चोरनी .... 

09 March 13                       .....अजय 

Friday 8 March 2013

बोझिल पलकें


बोझिल पलकें ...

पल-पल छेड़ती है ये दुनिया,
आप भी कुछ सता जाइये ....
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही, 
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 

दिन के सूरज ने तन को तपाया 

चाँद ने शब भर दिल को दुखाया
भीड़ तनहाइयों की, शहर में  
मेरा कोई नहीं इस पहर  में ...
आप  ही शाम  बन आइये...
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये ।


ज़िंदगी भर फिरे जंगलों में , 
आप हाजिर रहे फासलों में
धडकनों ने तराशा था उसको,
पत्थरो पर कुरेदा है जिसको ...
वो ही दिल आज दे जाइये। 
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये ।

धमनियों में, शिराओं में शामिल    

आती जाती हवाओं में दाखिल 
खोजता है जिसे आज भी दिल 
देखना  चाहता है ये संग-दिल 
रोशनी बन के आ जाइये  .....
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 

हैं बगीचों में लौटी बहारें,
खिलती कलियों पे भँवरे पधारें ,
लौट आई फिजाँ गुलशनों में ,
बागबाँ  रोज राहें बुहारें 
आप भी रुख दिखा जाइए...
साँझ घिर आयेगी, खुद-ब-खुद ही 
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 


आप भी कुछ सता जाइये ....
थोड़ी पलकें झुका लाइये । 


८ मार्च १३                             ......अजय।  

Tuesday 5 March 2013

आख़िर दिल है

आख़िर  दिल है

दिल है ....
दिल है, तो धड़केगा
धड़केगा और फड़केगा 
फड़केगा तो ... कुछ तो हरक़त होगी 
थोड़ी उल्फत ... तो थोड़ी गफलत होगी 
उल्फत है ...तो मोहब्बत होगी 
मोहब्बत हुई तो शोहरत होगी  
शोहरत से कुछ दिल भी जलेंगे 
कुछ कसीदे पढेंगे, तो कुछ हाथ भी मलेंगे 
किसी की जुबाँ पर वो पुराने किस्से होंगे
जिन में शामिल हमारे भी कुछ हिस्से होंगे 
कभी वो मन ही मन में मुस्कुराएंगे 
जब भी ख्यालों में हम उनके आयेंगे 
ये दिल है यारों ...
कभी तो तड़पेगा, 
आखिर ... दिल है
दिल है तो धड़केगा .

५ फरवरी २०१३                                 अजय 

Sunday 24 February 2013

मुस्कुरा के पीजिये


मुस्कुरा के पीजिये ...

जब आये हैं मयखाने में, दबा के पीजिये,
पैमाने में जब तक है,...मुस्कुरा के पीजिये। 

रहम-ओ-करम की आग को बुझा के पीजिये,
दुनिया से मिले दर्द को, भुला के पीजिये।

गोया, सभी लबरेज हैं बोतल शराब की,
जो चैन चुरा ले, उसे, छुपा के पीजिये।

दिल, दिल के है करीब, फिर ये कैसे फासले,
तसव्वुर में फासलों को, सब मिटा के पीजिये।

तनहाइयों में है ख़ुमार, उनके प्यार का,
प्याले में बर्फ गर्म सी घुला के पीजिये।

होते नज़र के सामने तो बात भी होती,
वो हैं नहीं, तस्वीर ही, लगा के पीजिये।

२४ फरवरी १३                           ......अजय 

Friday 15 February 2013

वैलेंटाइन डे का अर्थशास्त्र

राधा-उधो संवाद 

( वैलेंटाइन डे का अर्थशास्त्र )


उधो, कैसा प्रेम-शास्त्र ये ...?
प्रेम का केवल एक रोज है ?
बूझो राधे ......अर्थ-शास्त्र है .... ,
दस गुलाब का एक रोज़ (Rose) है।

तुम करती हो प्रेम कृष्ण को
दिन की कोई सीमा ना है ,
दिन निर्धारित करने वालों ...
के मन की अभिलाषा क्या है .

समझो, कौन है इसके पीछे,
जिसने लाखों आज हैं खींचे
प्रेम नहीं मोहताज फूल का ...
करो आज एहसास भूल का।

कार्ड न हों तो स्नेह नहीं हो
ऐसी कोई बात नहीं ...
प्रेम तो तब भी जीवित था ...
जब कृष्ण तुम्हारे साथ नहीं।

14 फरवरी 13 ...अजय

Tuesday 12 February 2013

सियासत की बेड़ियाँ

सियासत की बेड़ियाँ ...
(अफज़ल पर सियासत ?) 

सोख कर आंसू लकीरें बन रहीं थीं गाल पर, 

तब कहाँ थे ये सियासतदार इतने साल भर, 
पूछते हैं पुत्र, माता , पत्नियाँ इस चाल पर,
है कोइ उत्तर तो दे दो आज इस सवाल पर ।

खैर, अब जो भी हुआ, उससे मिला सुकून है,
बंद लिफ़ाफ़ा है मगर एक खुला मजमून है...
कि जो करेंगे वो भरेंगे, जल नहीं यह खून है,
बह रहा जो धमनियों में द्रव बना जूनून है । 

मत परीक्षा ले कोई अब और मेरे धीर की, 
टूट जाएँगी अगर ये, बेड़ियाँ रणवीर की 
रुक नहीं पायेगी धारा, शांत गंगा-नीर की 
जल नहीं शोणित बहेगा चोटियों से "पीर" की .

12  फरवरी 13                               ...अजय 

चुनावी टिकट


चुनावी टिकट ...


जो टिकट मांगने आये हो, इस बार मोहाले में ...
भई नाम तो गिनवा दो पहले, दो-चार घोटाले में।

बतलाओ कितने दाखिल, एफ़ आइ आर हैं थाने में ... 
ईमान की बातें मत करना तुम यार मोहाले में .

अच्छा बतलाओ, हो माहिर, हथियार चलाने में ...
कितनों के सर  को फोड़ा तुमने, मार बवाले में ?

क्या फूट डला सकते हो तुम, विपरीत घराने में ...
कितने उस घर के ला  सकते हो, अपने पाले में ?

दंगों में शामिल रहे कभी, या क़त्ल कराने में ...
क्या जातिवाद भड़का सकते हो, पंडित, ग्वाले में ?

कितना दे सकते हो बोलो, इस  साल खजाने में ...
कुछ तो पेले होगे जरूर, गत साल हवाले में ?

अच्छा , आवेदन भरो, किसी तारीख पुराने में ...
कुछ  ले दे कर दिलवा देंगे, परधानी वाले में .

11 फरवरी 13                               ...अजय