Saturday 25 August 2012

मैं कमल हूँ...

मैं कमल हूँ...


धूल में लिपटा रहूँ या पंक से सनूँ ,
हूँ कमल मैं, और हर दम ही खिला रहूँ 

धूप हो या छाँव हर मौसम में मैं हँसूं
रंक हो या नृप सबके ह्रदय में बसूँ 

मंदिरों में मूर्तियों की अर्चना जब हो
देवता और देवियों की प्रार्थना जब हो 
धूप और दीप की प्रतिअर्पना जब हो
पुष्प और प्रसाद के संग मिल के मैं चढूँ

गम में कोई डूबे तो उसको हौसला मैं दूं
जो हो कोई मजबूर, उसको आसरा मैं दूँ
दुःख दर्द के वनों को सदा काटता चलूँ 
खुद खुश रहूँ मैं  और ख़ुशी बांटता चलूँ 

२५ अगस्त १२                             ...अजय

1 comment:

  1. सुन्दर ...कोमल मन के भाव ...!!
    ताज्जुब है ...आपकी बहुत सारी रचनाएँ मुझसे बिना पढ़े कैसे रह गयीं ....???

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