Saturday 25 August 2012

मैं कमल हूँ...

मैं कमल हूँ...


धूल में लिपटा रहूँ या पंक से सनूँ ,
हूँ कमल मैं, और हर दम ही खिला रहूँ 

धूप हो या छाँव हर मौसम में मैं हँसूं
रंक हो या नृप सबके ह्रदय में बसूँ 

मंदिरों में मूर्तियों की अर्चना जब हो
देवता और देवियों की प्रार्थना जब हो 
धूप और दीप की प्रतिअर्पना जब हो
पुष्प और प्रसाद के संग मिल के मैं चढूँ

गम में कोई डूबे तो उसको हौसला मैं दूं
जो हो कोई मजबूर, उसको आसरा मैं दूँ
दुःख दर्द के वनों को सदा काटता चलूँ 
खुद खुश रहूँ मैं  और ख़ुशी बांटता चलूँ 

२५ अगस्त १२                             ...अजय

Saturday 11 August 2012

आपकी सदा

आपकी सदा...


आपकी सदाओं ने हमें खींच लिया

किसी गर्म आगोश ने जैसे भींच लिया


पहुँच ही गए आपके दर घूमते-फिरते

 
और मन के सूखते दरख्तों को आज सींच लिया


कविताएँ,गीत,ग़ज़लें... नहीं सिर्फ बहाने हैं



इनके जरिये ही हमें मुरझाये गुल खिलाने हैं

और इनसे ही, बिछड़े दिल भी मिल जाने हैं







                                                           ....अजय 

Thursday 9 August 2012

सपना...अपना अपना

सपना अपना-अपना...


हर शख्स सिर्फ अपना है
सबका अपना सपना है 
औरों को समझे कोई इतना वक़्त ही नहीं
हर घड़ी हर पल वह सिर्फ अपना है

क्यों नहीं समझता मैं इस तथ्य को

क्यों समझाना चाहता हूँ मैं अपनी बात किसी अन्य को
पर जब भी ऐसा करता हूँ , मैं यह भूल जाता हूँ
खता उसकी नहीं, मेरी ही है क्योंकि......
उसका नजरिया उसका अपना और मेरा अपना है
सबका अपना सपना है 
हर शख्स सिर्फ अपना है 

  10 अप्रैल 93                         ...अजय 

Saturday 4 August 2012

घनघोर बदरवा

घनघोर बदरवा...  


घिरि आओ घनघोर बदरवा...
घिरि आओ घनघोर.
खेतों की माटी है प्यासी...
छाई है चहुँ ओर उदासी
आकर अपने पावन जल से
मन कर जाओ विभोर बदरवा
घिरि आओ घनघोर बदरवा
घिरि आओ घनघोर.

पेड़ों के पत्ते तक आकुल ...

तुम ना आये सब जन व्याकुल
कहाँ खो गए श्याम-सांवरे
अब न सताओ और बदरवा
घिरि आओ घनघोर बदरवा
घिरि आओ घनघोर .

राह तुम्हारी देख रहे हम...

मन में दबा हुआ बिछोह-गम
तुम आओ तो सावन लाये
साजन को घर ओर बदरवा
घिरि आओ घनघोर बदरवा
घिरि आओ घनघोर.
04 अगस्त 12                  .....अजय