Sunday 2 October 2011

Ghazal - Chaand ko aainaa....

चाँद को आइना ...


चाँद को आइना, दिखा रहा है कोई 
एक रूठे हुए साथी को , मना रहा है कोई .
चाँद को आइना दिखा रहा है कोई

जैसे मुरझा रहा हो, गुल खिल के 
वैसा चेहरा, दिखा रहा है कोई .
चाँद को आइना, दिखा रहा है कोई

रूठने से क्या कभी भी, कुछ हुआ हासिल 
मुझ पे बस जुल्म, ढा रहा है कोई
चाँद को आइना, दिखा रहा है कोई

वे जो रूठे तो, बदलियाँ छायीं
लब पे उनके, हंसी को, बुला रहा है कोई
चाँद को आइना, दिखा रहा है कोई

खताएं तेरी हों , मेरी हों, इससे फर्क ही क्या
ना-खफा हो, अब सर तो, झुका रहा है कोई
चाँद को आइना, दिखा रहा है कोई

मान भी जाओ, मुस्कुरा दो, अब तो 
ये तो सोचो, कि अपना ही, मना रहा है कोई
चाँद को आइना, दिखा रहा है कोई

०१ अक्तूबर ११                                            ...अजय 

2 comments: