Monday 31 October 2011

धर्म युद्ध

" धर्म-युद्ध "
(हैदराबाद में तसलीमा नसरीन की पुस्तक 
विमोचन समारोह -२००७ पर हमले से प्रेरित)

कुछ फूल फर्श पर पड़े हुए,
कुछ शीश शर्म से गड़े हुए 
कुर्सियां गिरीं आड़ी - टेढ़ी
हैं लोग धर्म पर भिड़े हुए

जो बात कही... वह उनकी थी 
क्यों मेरे कान हैं खड़े हुए 
क्यों भड़क उठा हूँ मैं उन पर
अपने विचार ले अड़े हुए

वे भी तो हैं मेरे घर के
उन ने भी दुनिया देखी है 
उन पर क्यों खुद को थोपूं मैं 
जिसने सब ग्रन्थ हैं पढ़े हुए 

सलमान हों या तसलीमा हों 
सबकी अपनी ही सीमा हों
कोई न किसी को बहकाए
कोई न किसी को धमकाए 
मर्यादा में हर धर्म चलें
मर्यादा में हर कर्म पलें
हर धर्म से लो उनकी खूबी
सब धर्म रत्न से जड़े हुए 

९ अगस्त०७                  ...अजय 

3 comments:

  1. भाई अजय जी बहुत सुन्दर विचार और एक समृद्ध भाव को
    आपने प्रस्तुत किया है...
    बधाई हो बहुत सुन्दर ...
    मेरे ब्लॉग पे आपका स्वागत है...
    www.mknilu.blogspot.com

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  2. सच्चाई से रूबरू करवाने का आभार....

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  3. शुक्रिया बंधुओं...कुछ दिनों से थोडा नेट से दूर हूँ छमा चाहता हूँ देर से रेस्पोंड करने के लिए

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