Saturday 20 August 2011

Dard Se Naata

दर्द से नाता 

कितना गहरा हमारा नाता है ...
कि दर्द रह - रह के उभर आता है

तिनका तिनका जुटा के लाये हम ...
बन के बवंडर वो चला आता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है

सर्दियाँ गुजर गयीं ठिठुरते हुए ...
गर्मियों में मुझे लिहाफ वो उढाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है

जख्म सूखें भी तो सूखें कैसे ...
तीखे नाखून वो दिखाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है

रतजगे हमने किये जिनकी नींदों के लिए ...
वो ही मेरे घर को लूटे जाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है

जियेगा वो भी चैन से कैसे...
जो हमें इस क़दर रुलाता है
कि दर्द रह - रह के उभर आता है

१९अप्रैल २००८                                  ...अजय 

2 comments:

  1. very nice. saras lekhan ke lie aapka abhar.

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  2. सुशीला जी उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद

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