Saturday 23 July 2011

बेरुखी

वो बेरुखी उनकी, बड़ा बवाल कर गयी 
हँसते हँसाते दिल से इक सवाल कर गयी

खोये थे खुश-गँवार हम, लम्हे किये नज़र
अक्सर हमारे दिल पे जो, वो चाल, कर गयी
वो बेरुखी उनकी...

छूकर बदन उनका हवा, आती हमारे पास
और जाते जाते हमको माला-माल कर गयी
वो बेरुखी उनकी...

गम-सुम सा वो चेहरा, और झुकी झुकी नज़र
किसी और के होकर चले, कदम जो दर बदर,
वह फूल सी कटार, जिसकी धार भी न थी
वो इस गरीब को यूँ ही हलाल कर गयी
वो बेरुखी उनकी...

१५ फरवरी ०६                           ...अजय 

2 comments:

  1. वह फूल सी कटार, जिसकी धार भी न थी
    वो इस गरीब को यूँ ही हलाल कर गयी

    khubsoorat panktiyaan hain...

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