Thursday 21 July 2011

आज गंगा मर रही है

आज गंगा मर रही है ...

आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

रो रहा है "यम" समंदर
बिलखते हैं शैल, गिरिवर
विनय करते संत, मुनिवर  
हे जगत्पति , भाल-शशिधर 
कर कृपा इसको बचालो...
आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

देख लो निष्ठुर "निठारी"
बालकों पर काल भारी
वर्दियों को घुन लगे हैं
रक्षकों को नींद प्यारी
"भक्षकों" के चंद सिक्कों का 
वजन जनता पे भारी
नींद  से इनको जगा दो...
आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

क़त्ल हो रही है श्रद्धा
रोज धोखा खा रही है
मान मर्यादा की अस्मत 
रोज लूटी जा रही है
पहरेदार धुत पड़े हैं 
जान मुजरे गा रही हैं
गश्त नंदी संग लगा दो...
आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

आँख की लज्जा मरी है 
स्नेह संग ममता मरी है
तज के शील, वस्त्र, बाला
नाच नंगा कर रही है
द्रौपदी तक जग चुके 
वे कृष्ण शायद सो गए हैं
चीर इनका तुम बढ़ा दो...
आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

है  नहीं बस नाम "गंगा"
यह हमारी शान है 
प्राण है  इस देश का
जन-जन का निज-सम्मान है 
इस देश के परिवेश में,
शामिल हवा में, धूल में
थी शाख, भारत-वृक्ष की
यह तन में है, और मूल में
सभ्यता है  यह हमारी
संस्कृति बन कर रही है
देर मत क्षण भर लगाना
प्रकट हो इसको सम्हालो...
आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

क्या यही वह देश है
जिसमें रहा करते थे तुम
शैल-पुत्री संग लीलाएं
रचा करते थे तुम...?
स्वर्ग से पृथ्वी पे गंगा को 
तुम्ही ने राह दी थी
और इस गंगा ने 
सारे देश को निर्वाह दी थी
हो चुकी "जल" हीन यह
अब चंद साँसे भर रही है...
है अगर रिश्ता कोई तो 
आ के गंगाजल पिला दो...
आज गंगा मर रही है
आख़िरी दम भर रही है

 (10 अप्रैल 07)               ...अजय 
(यम = यमराज जो कभी  किसी के लिए रोता नहीं )

2 comments:

  1. Behtareen! Ganga ke prati aapke vichaar shobhneey hain! I would suggest... 'thi nahi bas naam Ganga' waale stanza me... 'thi' ke jagah 'Hai' laga diya jaaye... jahan jahaan 'thi' hai... wahan wahan 'Hai' hona chahiye...

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  2. सुझाव के लिए शुक्रिया .मैंने बदलाव पोस्ट कर दिया.

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