Saturday 11 June 2011

कवि ...

"कवि"...

नमस्कार साथियों ; घबराना मत ; मैं कोई कवि नहीं
मैं जानता हूँ ; कवि की अच्छी छवि नहीं.

मंच मिलते ही ये शुरू हो जाते हैं और तब 
ये अपने गुरु के ही नहीं ,बृहस्पति के भी गुरु हो जाते हैं.

जैसे पीने वाले हाथों में जाम लेते हैं
कवि महोदय झट से माइक को थाम लेते हैं.

फिर भाई का लक्ष्य श्रोता को घोंट के पीना होता है 
जैसे फौजी गोली का लक्ष्य दुश्मन का सीना होता है.

कवि दनादन अपने छंदों की बौछार करता है 
श्रोता कायल हो जाय वो ऐसे वार करता है.

अब श्रोताओं की भी कुछ सुन ही लीजिये
अपने आस - पास का ही जरा जायजा तो लीजिये. 

कोई आँखें मूँद - मूँद के सुनता है 
तो कोई अपने स्थान पर ही कूद- कूद  के सुनता है.

किसी को देखो तो लगता बहुत मगन है 
और किसी के ठहाकों से गूंजता यह गगन है

अगले को देखो तो लगता, अति भाव - विभोर है 
किन्तु  चोर निगाह बगल में बैठी मोहतरमा की ओर है.

कुछ के तालियों की खूब पटपटाहट है
और कुछ के चेहरों पर मंद-मंद  मुस्कुराहट है.

इसी चटपटाहट , मुस्कुराहट से कवि को शक्ति मिलती है
उसे अगली रचना की अगली पंक्ति मिलती है. 

सत्य है कि कवि आपके प्रेम का प्यासा है
रचना आपका दिल छू ले, यही उसकी आशा है.

उसे गलत न समझें,... कविता आसान  नहीं है
क्योंकि बाज़ार में इसकी, कोई दुकान नहीं है. 

बड़े मंथन के बाद एक-एक "रस", "छंद" बनते हैं
कवि ह्रदय निचोड़ कर "पद", "बंद" बनते हैं.

वनस्पति,खनिज, आसव की  कीमत आसमान छूती है
पर कविता की कीमत तो,... सिर्फ कवि का सम्मान छूती है.

यही वज़ह है कि हर  कवि मंच को  पकड़ता है
आप तक खुद को पहुंचा सके इसलिए माइक को जकड़ता है.

और जैसे कठिन है नौजवान के हाथ से बाइक लेना
ठीक वैसे ही क्रूर  है, मंच पर खड़े कवि से माइक लेना

18/03/2010                                                ...अजय 

1 comment:

  1. वनस्पति,खनिज, आसव कि कीमत आसमान छूती है
    पर कविता की कीमत तो,... सिर्फ कवि का सम्मान छूती है.

    SaTeek...

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