Sunday 12 June 2011

हमारी महानता...

हमारी महानता...

आप तो जानते ही हैं इस देश का नाम हिंदुस्तान है,
और ये भी तो ....की ये देश बड़ा महान है 

सोचता हूँ मैं भी कुछ आपको सवाल दे  दूं
देश की महानता की ही कुछ मिसाल दे दूं

देखिये तो ...लोग कभी दायें पे बायाँ, 
कभी बाएं पे दायाँ  पैर चढ़ाये बैठे हैं
ऐसा लगता है जैसे भीतर ही भीतर,
किसी ख़ास परेशानी से ऐंठे हैं.

तो जान लीजिये कि इस ऐंठन का सबब क्या है
उठे तो... लोग क्या सोचेंगे?...अतः देरी से पेशाब दबाये बैठे हैं
दिखावे कि कला में हमारा कोई जबाब नहीं है
तभी तो सबूतों के बावजूद हम "कसाब" जिलाए बैठे हैं.

यहाँ लोग गुरु का अपमान नहीं करते
तभी तो संसद के षड्यंत्री को आखों पे उठाये बैठे हैं
देश कि अवाम को कंकड़िया चावल मिले न मिले
उधर कसाब भाई बासमती कि आस लगाये बैठे हैं.

नेताजी कमर में तमंचा खोंसे विचरते हैं
पर दफ्तर कि दीवार पर गांधी जी  सजाये बैठे हैं
कभी शहादत के बाद लोग मूर्तियाँ  लगाते थे
आज जीते जी लोग अपनी प्रतिमा गढ़ाए बैठे हैं.

भोंपू लेकर चिंघाड़ते हैं कि हम साम्प्रदायिक नहीं
पार्टी दफ्तर में सम्प्रदायों की फेहरिश्त बनाए बैठे हैं
कहते नहीं थकते कि साम्प्रदायिक दलों के विरोधी हैं
मंत्री अमुक सम्प्रदाय का न हो तो सरकार गिराए बैठे हैं.

नीतियां गढ़ते है जो  लोग हमारी खातिर
एक पत्नी शहर में ...एक घर में बिठाये बैठे हैं
इसे दोहरे माप-दंड का पैमाना कहें या कुछ और
कि बेटियों के दर्द पे कराहते मगर बहुओं को झुलसाए बैठे हैं

दारू-ठेके का लाइसेंस लाखों में बेचते हैं 
भले ही  "स्वास्थ्य को  हानिकारक" लेबल सटाए बैठे हैं
मुद्दे उठाने को भेजा था जिन्हें चुन करके
वे ही अपने प्रश्नों का  दाम लगाये बैठे हैं 

अनगिनत सवाल हैं तुम्हे नींद से जगाने को 
पर क्या मैं ही बकता रहूँ... जब आप चुप्पी लगायेबैठे हैं
इस देश कि महानता में कोई कसर नहीं होगा
यदि मेरे सवालों का आप पर कोई असर नहीं होगा

इस देश कि इकाई हमसे, तुमसे बनती है
इकाई से दहाई,दहाई से सैकड़ा,बढ़ कर गिनती बनती है
तुम जागोगे तब यह  देश जागेगा
तुम कब जागोगे... हम ये आस लगाये बैठे हैं

08/02/2010                                                    .....अजय

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