Wednesday 22 June 2011

Dil ke Jarjar ...

ग़ज़ल : दिल के जर्जर दरवाजों को ...

दिल के जर्जर दरवाजों  को...धीरे से ही थपकाना 
टूट के गिरने की आदत है ...फिर से ये , गिर जाये ना.

चुरा के खुशबू ले जाती है... रोज सबा इस गुलशन से 
डरते डरते दिल कहता है ... कोई आंधी आए ना .

किसने छेड़ा राग पुराना...दिल में ये झनकार हुई 
अरसा बीता इन पेड़ों पे... कोई कोयल गाये ना .

तूफानों के मंज़र देखे ...हमने कितने याद नहीं
लाख चलायीं थीं पतवारें ...कश्ती साहिल पाए ना .

कह के गए थे फिर आयेंगे...दरवाज़े खोले रखना
राह तकत अँखियाँ पथरायीं कोई मुड़ कर आए ना .

दिल के जर्जर दरवाजों  को...धीरे से ही थपकाना 
टूट के गिरने की आदत है ...फिर से ये , गिर जाये ना.

17/07/1997                                                       ...अजय 


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